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________________ २१. नन्दिल (आनन्दिल) २७. नागार्जुन २८. श्री गोविन्द २९. भूतदिन्न २२. नागहस्ती २३. रेवती नक्षत्र २४. ब्रह्मदीपक सिंह २५. स्कन्दिलाचार्य ३०. लौहित्य ३१. दूष्यगण २६. हिमवन्त श्रोता और सभा मंगलाचरण के रूप में अर्हन् आदि की स्तुति करने के बाद सूत्रकार ने सूत्र का अर्थ ग्रहण करने की योग्यता रखने वाले श्रोता का चौदह दृष्टान्तों से वर्णन किया है। वे दृष्टान्त ये हैं—१.शैल और घन, २. कुटक अर्थात् घड़ा, ३. चालनी, ४. परिपूर्ण, ५. हंस, ६. महिष, ७. मेष, ८. मशक, ९. जलौका, १०. विडाली. ११. जाहक, १२. गौ, १३. भेरी, १४. आभीरी। एतद्विषयक गाथा इस प्रकार है सेल-घण-कुडग-चालिणि, पतिपुण्णग-हंस महिस-मेसे य। मसग-जलूग-बिराली, जागह-गो भेरी आभीरी॥ इन दृष्टान्तों का टीकाकारों ने विशेष स्पष्टीकरण किया है। श्रोताओं के समूह को सभा कहते हैं । सभा कितने प्रकार की होती है ? इस प्रश्न का विचार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि सभा संक्षेप में तीन प्रकार की होती है—ज्ञायिका, अज्ञायिका और दुर्विदग्धा । जैसे हंस पानी को छोड़कर दूध पी जाता है उसी प्रकार गुणसम्पन्न पुरुष दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं। इस प्रकार के पुरुषों की सभा ज्ञायिका-परिषद् कहलाती है। जो श्रोता, मृग, सिंह और कुक्कुट के बच्चों के समान प्रकृति से भोले होते हैं तथा असंस्थापित रत्नों के समान किसी भी रूप में स्थापित किये जा सकते हैं किसी भी मार्ग में लगाये जा सकते हैं, वे अज्ञायिक हैं। इस प्रकार के श्रोताओं की सभा अज्ञायिका कहलाती है। जिस प्रकार कोई ग्रामीण पण्डित किसी भी विषय में विद्वत्ता नहीं रखता और न अनादर के भय से किसी विद्वान् से कुछ पूछता ही है किन्तु केवल वातपूर्णवस्ति–वायु से भरी हुई मशक के समान लोगों से अपने पांडित्य की प्रशंसा सुनकर फूलता रहता है उसी प्रकार जो लोग केवल अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते, उनकी सभा दुर्विदग्धा कहलाती है। ज्ञानवाद इतनी भूमिका बाँधने के बाद सूत्रकार अपने मूल विषय पर आते हैं। वह विषय है ज्ञान। ज्ञान क्या है? ज्ञान पाँच प्रकार का है—१. आभिनिबोधिकज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनपर्ययज्ञान और ५. केवलज्ञान । यह ज्ञान संक्षेप में दो प्रकार का है—प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष का क्या स्वरूप है? प्रत्यक्ष के पुनः दो भेद हैं—इन्द्रिय-प्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष। इन्द्रिय-प्रत्यक्ष क्या है? इन्द्रिय प्रत्यक्ष पाँच प्रकार का है—१. श्रोत्रेन्द्रिय-प्रत्यक्ष, २. चक्षुरिन्द्रिय-प्रत्यक्ष, ३. (२८)
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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