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________________ २२०] [नन्दीसूत्र जा चुका है। इस कथन से ईश्वरकर्तृत्ववाद का भी निषेध हो जाता है। __संक्षिप्त रूप से श्रुतज्ञान का विषय कितना है, इसका भी उल्लेख सूत्रकार ने स्वयं किया है, यथा द्रव्यतः श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को उपयोग पूर्वक जानता और देखता है। यहाँ शंका हो सकती है कि श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को देखता कैसे है? समाधान में यही कहा और चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है कि यह उपमावाची शब्द है, जैसे किसी ज्ञानी ने मेरु आदि पदार्थों का इतना अच्छा निरूपण किया मानो उन्होंने प्रत्यक्ष करके दिखा दिया हो। इसी प्रकार विशिष्ट श्रुतज्ञानी उपयोगपूर्वक सर्वद्रव्यों को, सर्वक्षेत्र को, सर्वकालं को और सर्वभावों को जानता व देखता है। इस सम्बन्ध में टीकाकार ने यह भी उल्लेख किया है—'अन्ये तु "न पश्यति" "इति पठन्ति" अर्थात् किसीकिसी के मत से 'न पासइ' ऐसा पाठ है, जिसका अर्थ है-श्रुतज्ञानी जानता है किन्तु देखता नहीं है। यहाँ पर भी ध्यान में रखना चाहिए कि सर्वद्रव्य आदि को जानने वाला कम से कम सम्पूर्ण श्रुत-दश पूर्वो का या इससे अधिक का धारक ही होता है। इससे न्यून श्रुतज्ञानी के लिए भजना है। वह जान भी सकता है और कोई नहीं भी जान सकता। . श्रुतज्ञान के भेद और पठनविधि ११५.अक्खर सन्नी सम्मं, साइअं खलु सपजवसि च । गमिअं अंगपविट्ठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥१॥ आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिटुं । बिंति सुअनाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा ॥२॥ सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ अ ईहए याऽवि । तत्तो अपोहए वा, धारेइ, करेइ वा सम्मं ॥३॥ मूअं हुंकारं वा, बाढंकारं पडिपुच्छ वीमंसा । तत्तो पसंगपारायणं च परिणिट्ठा सत्तमए ॥४॥ सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निजुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे ॥५॥ से तं अंगपविठें, से तं सुअनाणं, से तं परोक्खनाणं, से तं नन्दी। ॥नन्दी समत्ता॥ ११५–(१) अक्षर, (२) संज्ञी, (३) सम्यक्, (४) सादि, (५) सपर्यवसित, (६) गमिक, (७) और अङ्गप्रविष्ट, ये सात और इनके सप्रतिपक्ष सात मिलकर श्रुतज्ञान के चौदह भेद हो जाते बुद्धि के जिन आठ गुणों से आगम शास्त्रों का अध्ययन एंव श्रुतज्ञान का लाभ देखा गया है, उन्हें शास्त्रविशारद एवं धीर आचार्य कहते हैं
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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