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श्रुतज्ञान]
[२१९ इसी प्रकार यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक–कभी नहीं था, वर्तमान में नहीं है, भविष्य में नहीं होगा, ऐसा नहीं है। भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा। यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है।
वह संक्षेप में चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से।
द्रव्य से श्रुतज्ञानी–उपयोग लगाकर सब द्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र से श्रुतज्ञानी -उपयोग युक्त होकर सब क्षेत्र को जानता और देखता है। काल से श्रुतज्ञानी–उपयोग सहित होकर सर्व काल को जानता व देखता है। भाव से श्रुतज्ञानी उपयुक्त हो तो सब भावों को जानता और देखता है।
विवेचन इस सूत्र में सूत्रकार ने गणिपिटक को नित्य सिद्ध किया है। जिस प्रकार पंचास्तिकाय का अस्तित्व त्रिकाल में रहता है, उसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक का अस्तित्व भी सदा स्थायी रहता है। इसके लिए सूत्रकर्ता ने ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और
इन पदों का प्रयोग किया है। पञ्चास्तिकाय और द्वादशाङ्ग गणिपिटक की तुलना इन्हीं सात पदों के द्वारा की गई है, जैसे—पञ्चास्तिकाय द्रव्यार्थिक नय से नित्य है, वैसे ही गणिपिटक भी नित्य है। विशेष रूप से इसे निम्न प्रकार से जानना चाहिए
(१) ध्रुव—जैसे मेरुपर्वत सदाकाल ध्रुव और अचल है, वैसे ही गणिपिटक भी ध्रुव है। (२) नियत सदा सर्वदा जीवादि नवतत्त्व का प्रतिपादक होने से नियत है।
(३) शाश्वत—पञ्चास्तिकाय का वर्णन सदाकाल से इसमें चला आ रहा है, अतः गणिपिटक शाश्वत है।
(४) अक्षय-जिस प्रकार गंगा आदि महानदियों के निरन्तर प्रवाहित रहने पर भी उनके मूल स्रोत अक्षय हैं उसी प्रकार द्वादशाङ्गश्रुत की शिष्यों को अथवा जिज्ञासुओं को सदा वाचना देते रहने पर भी कभी इसका क्षय नहीं होता, अतः अक्षय है।
(५) अव्यय-मानुषोत्तर पर्वत के बाहर जितने भी समुद्र हैं, वे सब अव्यय हैं अर्थात् उनमें न्यूनाधिकता नहीं होती, इसी प्रकार गणिपिटक भी अव्यय है।
(६) अवस्थित—जैसे जम्बूद्वीप आदि महाद्वीप अपने प्रमाण में अवस्थित हैं, वैसे ही बारह अंगसूत्र भी अवस्थित हैं।
(७) नित्य-जिस प्रकार आकाशदि द्रव्य नित्य हैं उसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक भी नित्य
ये सभी पद द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से द्वादशाङ्ग गणिपिटक और पञ्चास्तिकाय के विषय में कहे गए हैं। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से गणिपिटक का वर्णन सादि-सान्त आदि श्रुत में किया