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________________ २१८] [ नन्दीसूत्र को भी श्रुतज्ञानरूपी अनुपम तेज पुंज के सहारे से ही पार किया जा सकता है। श्रुतज्ञान ही स्व-पर प्रकाशक है, अर्थात् आत्म-कल्याण और पर - कल्याण में सहायक है । इसे ग्रहण करने वाला ही उन्मार्ग से बचता हुआ सन्मार्ग पर चल सकता है तथा मुक्ति के उद्देश्य को सफल बना सकता है। गणिपिटक की शाश्वतता ११४ – इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ । भुविं च भवइ अ, भविस्सइ अ । धुवे, निअए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । से जहानामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ । भुविं च, भवइ अ, भविस्सइ अ, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी, न कयाइ, नत्थि न कयाइ न भविससइ । भुविं च, अ, भविस्सइ अ, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । भवइ से समासओ चव्विहे पण्णत्ते, तं जहा— दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ, तत्थदव्वओ णं सुअनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ, पासइ, खित्तओ णं सुअनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ, पास, कालओ णं सुअनाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ, पासइ, भावओ णं सुअनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ, पासइ । ॥ सूत्र ५७ ॥ ११४–यह द्वादशाङ्ग गणिपिटक न कदाचित् न था अर्थात् सदैवकाल था, न वर्तमानकाल में नहीं है अर्थात् वर्त्तमान में है, न कदाचित् न होगा अर्थात् भविष्य में सदा होगा। भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्य में रहेगा। यह मेरु आदिवत् ध्रुव है, जीवादिवत् नियत है तथा पञ्चास्तिकायमय लोकवत् नियत है, गंगा सिन्धु के प्रवाहवत् शाश्वत और अक्षय है, मानुषोत्तर पर्वत के बाहरी समुद्रवत् अव्यय है । जम्बूद्वीपवत् सदैव काल अपने प्रमाण में अवस्थित है, आकाशवत् नित्य है । कभी नहीं थे, ऐसा नहीं है, कभी नहीं हैं, ऐसा नहीं है और कभी नहीं होंगे, ऐसा भी नहीं है । जैसे पञ्चास्तिकाय न कदाचित् नहीं थे, न कदाचित् नहीं हैं, न कदाचित् नहीं होंगे, ऐसा नहीं है अर्थात् भूतकाल में थे, वर्तमान में हैं, भविष्यत् में रहेंगे। वे ध्रुव हैं, नियत हैं, शाश्वत हैं, अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं, नित्य हैं।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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