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त्रैराशिक और नियतिवाद का वर्णन करते हैं।
छिन्नच्छेद नय उसे कहा जाता है, जैसे कोई पद अथवा श्लोक दूसरे पद की अपेक्षा न करे और न दूसरा पद ही प्रथम की अपेक्षा रखे । यथा - " धम्मो मंगलमुक्किट्ठे । "
इसी का वर्णन अच्छिन्नच्छेद नय के मत से इस प्रकार है, यथा-धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है। प्रश्न होता है कि वह कौनसा धर्म है जो सर्वोत्कृष्ट मंगल है ? उत्तर में बताया जाता है कि "अहिंसा संजमो तवो।" इस प्रकार दोनों पद सापेक्ष सिद्ध हो जाते हैं । यद्यपि बाईस सूत्र और अर्थ दोनों प्रकार से व्यवच्छिन्न हो चुके हैं किन्तु इनका परंपरागत अर्थ उक्त प्रकार से किया गया है । वृत्तिकार नेत्रैराशिक मत आजीविक सम्प्रदाय को बताया है, रोहगुप्त द्वारा प्रवर्तित सम्प्रदाय को नहीं ।
( ३ ) पूर्व
१०६ – से किं तं पुव्वगए ?
पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा—
[ नन्दीसूत्र
(१) उप्पायपुव्वं, (२) अग्गाणीयं, (३) वीरिअं (४) अत्थिनत्थिप्पवायं, (५) नाणप्पवायं, (६) सच्चप्पवायं, (७) आयप्पवायं, (८) कम्मप्पवायं, (९) पच्चक्खाणप्पवायं, (१०) विज्जाणुप्पवायं, (११) अबंझं, (१२) पाणाऊ, (१३) किरियाविसालं, (१४) लोकबिंदुसारं ।
( १ )
उपाय- पुव्वस्स णं दस वत्थू, चतारि चूलियावत्थू पण्णत्ता, (२) अग्गेणीयपुव्वस्स णं चोद्दस वत्थू, दुवालस चूलियावत्थू पण्णत्ता, वीरिय-पुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू, अट्ठ चूलियावत्थू पण्णत्ता,
(३)
अत्थिनत्थिप्पवाय- पुव्वस्स णं अट्ठारस वत्थू, दस चूलियावत्थू पण्णत्ता,
नाणप्पवायपुव्वस्स णं वारस वत्थू पण्णत्ता,
(४)
(५)
(६) सच्चप्पवायपुव्वस्स णं दोण्णि वत्थू पण्णत्ता, (७) आयप्पवायपुव्वस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता, (८) कम्मप्पवायपुव्वस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, (९) पच्चक्खाणपुव्वस्स णं वीसं वत्थू पण्णत्ता, (१०) विज्जाणुप्पवायपुव्वस्स णं पन्नरस वत्थू पण्णत्ता, (११) अवंज्झपुव्वस्स णं बारस वत्थू पण्णत्ता, (१२) पाणाउपुव्वस्स णं तेरस वत्थू पण्णत्ता, (१३) किरिआविसालपुव्वस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, (१४) लोकबिंदुसारपुव्वस्स णं पणवीसं वत्थू पण्णत्ता ।
दस चोदस अट्ठ अट्ठारस बारस दुवे अ वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा पन्नरस अणुप्पवायम्मि ॥ १ ॥