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________________ [ २०९ श्रुतज्ञान ] तीन ही राशियाँ मानता था। सूत्र में " छ चउक्कनइआई, सत्त तेरासियाई" यह पद दिया गया है। इसका भाव यह है कि आदि के छः परिकर्म चार नयों की अपेक्षा से वर्णित हैं और इनमें स्वसिद्धांत का वर्णन किया गया है तथा सातवें परिकर्म में त्रैराशिक का उल्लेख है । ( २ ) सूत्र १०५ – से किं तं सुत्ताइं ? सुत्ताइं बावीसंपन्नत्ताई, तं जहा (१) उज्जुसुयं, (२) परिणयापरिणयं, (३) बहुभंगिअं, (४) विजयचरिअं (५) अणंतरं, (६) परंपरं, (७) आसाणं, (८) संजूहं, (९) संभिण्णं, (१०) अहव्वायं, (११) सोवत्थिआवत्तं, (१२) नंदावत्तं, (१३) बहुलं, (१४) पुट्ठापुट्ठे (१५) विआवत्तं, (१६) एवंभूअं, (१७) दुयावत्तं, (१८) बत्तमाणपयं, (१९) समभिरूढं, (२०) सव्वओभद्दं, (२१) पस्सासं, (२२) दुप्पडिग्गनं । इच्चेइआई बावीसं सुत्ताइं छिन्नच्छेअनइआणि ससमयसुत्तपरिवाडीए, इच्चेइआई बावीसं सुत्ताइं अच्छिन्नच्छेअनइआणि आजीविअसुत्तपरिवाडीए, इच्चेइआई बावीसं सुत्ताइं तिग-णइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए, इच्चेइआई बावीसं सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्त-परिवाडीए । एवामेव सपुव्वावरेण अट्ठासीई सुत्ताइं भवंतीतिमक्खायं, से त्तं सुत्ताई । १०५ – भगवन् वह सूत्ररूप दृष्टिवाद कितने प्रकार का है ? गुरु ने उत्तर दिया – सूत्र रूप दृष्टिवाद बाईस प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। जैसे— (१) ऋजुसूत्र, (२) परिणतापरिणत, (३) बहुभंगिक, (४) विजयचरित, (५) अनन्तर, (६) परम्पर, (७) आसान, (८) संयूथ, (९) सम्भिन्न, (१०) यथावाद, (११) स्वस्तिकावर्त्त, (१२) नन्दावर्त्त, (१३) बहुल, (१४) पृष्टापृष्ट, (१५) व्यावर्त्त, (१६) एवंभूत, (१७) द्विकावर्त्त, (१८) वर्त्तमानपद, (१९) समभिरूढ़, (२०) सर्वतोभद्र, (२१) प्रशिष्य, (२२) दुष्प्रतिग्रह | ये बाईस सूत्र छिन्नच्छेद - नयवाले, स्वसमय सूत्र परिपाटी अर्थात् स्वदर्शन की वक्तव्यता के आश्रित हैं। ये ही बाईस सूत्र आजीविक गोशालक के दर्शन की दृष्टि से अच्छिन्नच्छेद नय वाले हैं। इस प्रकार से ये ही सूत्र त्रैराशिक सूत्र परिपाटी से तीन नय वाले हैं और ये ही बाईस सूत्र स्वसमयसिद्धान्त की दृष्टि से चतुष्क नय वाले हैं। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलकर अट्ठासी सूत्र हो जाते हैं। यह कथन तीर्थंकर और गणधरों ने किया है। यह सूत्ररूप दृष्टिवाद का वर्णन है । विवेचन — इस सूत्र में अट्ठासी सूत्रों का वर्णन है । इनमें सर्वद्रव्य, सर्वपर्याय, सर्वनय और सर्वभंग - विकल्प नियम आदि बताये गये हैं । वृत्तिकार और चूर्णिकार, दोनों के मत से उक्त सूत्र में बाईस सूत्र छिन्नच्छेद नय के मत से स्वसिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले हैं और ये ही सूत्र अच्छिन्नच्छेद नय की दृष्टि से अबन्धक,
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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