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श्रुतज्ञान]
[२११ वारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि। तीसा पुण तेरसमे, चोद्दसमे पण्णवीसाओ ॥२॥ चत्तारि दुवालस अट्ठ चेव दस चेव चुल्लवत्थूणि।
आइल्लाण चउण्हं, सेसाणं चूलिया नत्थि ॥३॥ से तं पुव्वगए। १०६-पूर्वगत-दृष्टिवाद कितने प्रकार का है ?
पूर्वगत-दृष्टिवाद चौदह प्रकार का है, यथा—(१) उत्पादपूर्व, (२) अग्रायणीयपूर्व, (३) वीर्यप्रवादपूर्व, (४) अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, (५) ज्ञानप्रवादपूर्व, (६) सत्यप्रवादपूर्व, (७) आत्मप्रवादपूर्व, (८) कर्मपवादपूर्व, (९) प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, (१०) विद्यानुवादप्रवादपूर्व, (११) अबन्ध्यपूर्व, (१२) प्राणायुपूर्व, (१३) क्रियाविशालपूर्व, (१४) लोकबिन्दुसारपूर्व।
(१) उत्पादपूर्व में दस वस्तु और चार चूलिका वस्तु हैं। (२) अग्रायणीयपूर्व में चौदह वस्तु और बारह चूलिका वस्तु हैं। (३) वीर्यप्रवादपूर्व में आठ वस्तु और आठ चूलिका वस्तु हैं। (४) अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व में अठारह वस्तु और दस चूलिका वस्तु हैं। (५) ज्ञानप्रवादपूर्व में बारह वस्तु हैं। (६) सत्यप्रवादपूर्व में दो वस्तु हैं। (७) आत्मप्रवादपूर्व में सोलह वस्तु हैं। (८) कर्मप्रवादपूर्व में तीन वस्तु बताए गए हैं। (९) प्रत्याख्यानपूर्व में बीस वस्तु हैं।। (१०) विद्यानुवादपूर्व में पन्द्रह वस्तु कहे गए हैं। (११) अबन्ध्यपूर्व में बारह वस्तु प्रतिपादन किए गए हैं। (१२) प्राणायुपूर्व में तेरह वस्तु हैं। (१३) क्रियाविशालपूर्व में तीस वस्तु कहे गये हैं। (१४) लोकबिन्दुसारपूर्व में पच्चीस. वस्तु हैं।
आगम के वर्ग, अध्ययन आदि विभाग वस्तु कहलाते हैं। छोटे विभाग को चूलिका कहते हैं। उक्त चौदह पूर्वो में वस्तु और चूलिकाओं की संख्या इस प्रकार हैं
___पहले में १०, दूसरे में १४, तीसरे में ८, चौथे में १८, पाँचवें में १२, छठे में २, सातवें में १६, आठवें में ३०, नवमें में २०, दसमें में १५, ग्यारहवें में १२, बारहवें में १३, तेरहवें में ३० और चौदहवें में २५ वस्तु हैं।
आदि के चार पूर्वो में क्रम से प्रथम में ४, द्वितीय में १२, तृतीय में ८ और चतुर्थ पूर्व में १० चूलिकाएँ हैं। शेष पूणे में चूलिकाएँ नहीं हैं।