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________________ २००] [नन्दीसूत्र यह प्रश्नव्याकरण का विवरण है। विवेचन—प्रश्नव्याकरण में प्रश्नोत्तर रूप से पदार्थों का वर्णन किया गया है। प्रायः सूत्रों के नामों से ही अनुमान हो जाता है कि इनमें किन-किन विषयों का वर्णन है। इस सूत्र का नाम भी प्रश्न और व्याकरण यानी उत्तर, इन दोनों भागों को एक करके रखा गया है। इसमें एक सौ आठ प्रश्न ऐसे हैं जो विद्या या मंत्र का पहले विधिपूर्वक जप करने पर फिर किसी के पूछने पर शुभाशुभ उत्तर कहते हैं। एक सौ आठ ऐसे भी हैं जो विद्या या मंत्र-विधि से सिद्ध किए जाने पर बिना पूछे ही शुभाशुभ कह देते हैं। साथ ही और एक सौ आठ प्रश्न ऐसे हैं जो सिद्ध किए जाने के पश्चात् पूछने पर या न पूछने पर भी शुभाशुभ कहते हैं। सूत्र में अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न तथा आदर्शप्रश्न इत्यादि बड़े विचित्र प्रकार के प्रश्नों और अतिशायी विद्याओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त मुनियों का नागकुमार और सुपर्णकुमार देवों के साथ जो दिव्य संवाद हुआ, उसका भी वर्णन है। अंगुष्ठ आदि जो प्रश्न कथन किये गए हैं उनका तात्पर्य यह है कि अंगुष्ठ में देव का आवेश होने से उत्तर प्राप्त करने वाले को यह मालूम होता है कि मेरे प्रश्न का उत्तर अमुक मुनि के अंगुष्ठ द्वारा दिया जा रहा है। स्पष्ट है कि इस सूत्र को मंत्रों और विद्याओं में अद्वितीय माना गया है। समवायाङ्ग सूत्र में भी प्रश्नव्याकरण सूत्र का परिचय दिया गया है और यह सिद्ध है कि यह सूत्र मन्त्रों और विद्याओं की दृष्टि से अद्वितीय है, किन्तु वर्तमान में इसके अतिशय विद्यावाले अध्ययन उपलब्ध नहीं होते। केवल पांच आश्रव तथा पाँच संवररूप दस अध्ययन ही विद्यमान हैं। वर्तमान काल के प्रश्नव्याकरण में दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले में क्रमशः हिंसा, झूठ, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का विस्तृत वर्णन है तथा दूसरे श्रुतस्कन्ध में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का सुन्दर विवरण दिया गया है। इनकी आराधना करने से अनेक प्रकार की लब्धियों की प्राप्ति का उल्लेख भी है। प्रश्नव्याकरण के विषय में दिगम्बर मान्यता दिगम्बर मान्यतानुसार इस सूत्र में लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, जय-पराजय, हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का प्ररूपण किया गया है। इनके सिवाय इसमें तत्त्वों का निरूपण करनेवाली चार धर्मकथाओं का भी विस्तृत वर्णन है, जिन्हें क्रमश: नीचे बताया जा रहा (१) आक्षेपणी कथा—जो नाना प्रकार की एकान्त दृष्टियों की निराकरणपूर्वक शुद्धि करके छह द्रव्य और नौ पदार्थों का प्ररूपण करती है उसे आक्षेपणी कथा कहते हैं। (२) विक्षेपणी कथा जिसमें पहले पर-समय के द्वारा स्व-समय में दोष बताए जाते हैं, तत्पश्चात् पर-समय की आधारभूत अनेक प्रकार की एकान्त दृष्टियों का शोधन करके स्व-समय की स्थापना की जाती है तथा छह द्रव्य और नौ पदार्थों का प्ररूपण किया जाता है वह विक्षेपणी कथा
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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