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श्रुतज्ञान]
[२०१ कही जाती है।
(३) संवेगनी कथा जिसमें पुण्य के फल का वर्णन हो, जैसे तीर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, विद्याधर और देवों की ऋद्धियाँ पुण्य के फल हैं। इस प्रकार विस्तार से धर्म के फल का वर्णन करने वाली संवेगनी कथा है।
(४) निवेदनी कथा—पापों के परिणामस्वरूप नरक, तिर्यंच आदि में जन्म-मरण और व्याधि, वेदना, दारिद्र्य आदि की प्राप्ति के विषय में बताने वाली तथा वैराग्य को उत्पन्न करने वाली कथा निर्वेदनी कहलाती है।
उक्त चारों कथाओं का प्रतिपादन करते हुए यह भी कहा गया है कि जो जिन-शासन में अनुरक्त हो, पुण्य-पाप को समझता हो, स्व-समय के रहस्य को जानता हो तथा तप-शील से युक्त और भोगों से विरक्त हो, उसे ही विक्षेपणी कथा कहनी चाहिए, क्योंकि स्व-समय को न समझने वाले वक्ता के द्वारा पर-समय का प्रतिपादन करने वाली कथाओं को सुनकर श्रोता व्याकुलचित्त होकर मिथ्यात्व को स्वीकार कर सकते हैं। इस प्रकार प्रश्नव्याकरण का विषय है। शेष वर्णन पूर्ववत् है।
(११) श्री विपाकश्रुत ९३—से किं तं विवागसुअं?
विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविन्जइ। तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा।
से किं तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुह-विवागाणं नगराइं, उन्जाणाई, वणसंडाई, चेइआइं, रायाणो, अम्मा-पियरो, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइआ इड्डिविसेसा, निरयगमणाई,संसारभव-पवंचा, दुहपरंपराओ, दुकुलपच्चायाईओ, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ, से त्तं दुहविवागा।
९३–प्रश्न—भगवन् ! विपाकश्रुत किस प्रकार का है ?
उत्तर—विपाकश्रुत में सुकृत-दुष्कृत अर्थात् शुभाशुभ कर्मों के फल-विपाक कहे जाते हैं। उस विपाकश्रुत में दस दुःखविपाक और दस सुखविपाक अध्ययन हैं।
प्रश्न दुःखविपाक क्या है ?
उत्तर–दुःखविपाक में दुःखरूप फल भोगने वालों के नगर, उद्यान, वनखंड, चैत्य, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इह-परलौकिक ऋद्धि, नरकगमन, भवभ्रमण, दुःखपरम्परा, दुष्कुल में जन्म तथा दुर्लभबोधिता की प्ररूपणा है। यह दुःखविपाक का वर्णन है।
विवेचनविपाकसूत्र में कर्मों का शुभ और अशुभ फल उदाहरणों के द्वारा वर्णित है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं-दुःखविपाक एवं सुखविपाक। पहले श्रुतस्कन्ध में दस अध्ययन हैं जिनमें अन्याय,