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________________ १८२] [नन्दीसूत्र मात्रा संयम की रक्षा के लिए परिमित आहार ग्रहण करना। वृत्तिपरिसंख्यान—विविध अभिग्रह धारण करके संयम को पुष्ट बनाना। वाचना सूत्र में वाचनाएँ संख्यात ही हैं। अथ से लेकर इति तक शिष्य को जितनी बार नवीन पाठ दिया, लिखा जाए, उसे वाचना कहते हैं। अनुयोगद्वार—इस सूत्र में संख्यात पद हैं, जिन पर उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय, ये चार अनुयोग घटित होते हैं। अनुयोग का अर्थ यहाँ प्रवचन है अर्थात् सूत्र का अर्थ के साथ सम्बन्ध घटित करना। अनुयोगद्वारों का आश्रय लेने से शास्त्र का मर्म पूरी तरह और यथार्थ रूप से समझा जाता है। वेढ़ किसी एक विषय को प्रतिपादन करने वाले जितने वाक्य हैं उन्हें वेष्टक या वेढ़ कहते हैं। छन्द-विशेष को भी वेढ़ कहते हैं। वे भी संख्यात ही हैं। श्लोक-अनुष्टप आदि श्लोक भी संख्यात हैं। नियुक्ति–निश्चयपूर्वक अर्थ को प्रतिपादन करने वाली युक्ति, नियुक्ति कहलाती है। ऐसी नियुक्तियाँ संख्यात हैं। प्रतिपत्ति—जिसमें द्रव्यादि पदार्थों की मान्यता का अथवा प्रतिमा आदि अभिग्रह विशेष का उल्लेख हो, उसे प्रतिपत्ति कहते हैं। वे भी संख्यात हैं। उद्देशनकाल–अङ्गसूत्र आदि का पठन-पाठन करना। शास्त्रीय नियमानुसार किसी भी शास्त्र का शिक्षण गुरु की आज्ञा से होता है। शिष्य के पूछने पर गुरु जब किसी भी शास्त्र को पढ़ने की आज्ञा देते हैं, उनकी इस सामान्य आज्ञा को उद्देशन कहते हैं। समुद्देशनकाल–गुरु की विशेष आज्ञा को समुद्देशन कहते हैं, यथा “आचाराङ्ग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का अमुक अध्ययन पढ़ो।" इसे समुद्देश भी कहते हैं। अध्ययनादि विभाग के अनुसार नियत दिनों में सूत्रार्थ प्रदान की व्यवस्था पूर्वकाल में गुरुजनों ने की, जिसे उद्देशनकाल एवं समुद्देशन काल कहते हैं। पद—इस आचार-शास्त्र में अठारह हजार पद हैं। अक्षर सूत्र में अक्षर संख्यात हैं। गम अर्थगम अर्थात् अर्थ निकालने के अनन्त मार्ग हैं। अभिधान अभिधेय के वश से गम होते हैं। त्रस, स्थावर और पर्याय इसमें परिमित त्रसों का वर्णन है, अनन्त स्थावरों का तथा स्वपर भेद से अनन्त पर्यायों का वर्णन है। शाश्वत-धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य नित्य हैं। घट-पटादि पदार्थ प्रयोगज तथा संध्याकालीन लालिमा आदि विश्रसा (स्वभाव) से होते हैं। ये भी उक्त सूत्र में वर्णित हैं। नियुक्ति, हेतु, उदाहरण,
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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