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श्रुतज्ञान]
[१८३. लक्षण आदि अनेक पद्धतियों के द्वारा पदार्थों का निर्णय किया गया है।
आघविजंति सूत्र में जीवादि पदार्थों का स्वरूप सामान्य तथा विशेषरूप से कथन किया गया है।
पण्णविजंति–नाम आदि के भेद से कहे गये हैं। परूविज्जंति—विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किये गए हैं। दंसिज्जंति-उपमान-उपमेय के द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं। निदंसिज्जंति हेतुओं तथा दृष्टान्तों से वस्तु-तत्त्व का विवेचन किया गया है।
उवदंसिजंति शिष्य की बुद्धि में शंका उत्पन्न न हो, अतः बड़ी सुगम रीति से कथन किये गए हैं। ___आचारांग अर्धमागधी भाषा को समझने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। अधिकांश रचना गद्य में है और बीच-बीच में कहीं-कहीं पद्य भी आते हैं। सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है किन्तु काल-दोष से उसका पाठ व्यवच्छिन्न हो गया है। उपधान नामक नौवें अध्ययन में भगवान् महावीर की तपस्या का बड़ा ही मार्मिक विवरण है। उनके लाठ, वज्र-भूमि और शुभ्रभूमि में विहारों के बीच घोर उपसर्ग सहन करने का उल्लेख है। पहले श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन तथा चवालीस उद्देशक हैं, दूसरे श्रुतस्कन्ध में मुनि के लिये निर्दोष भिक्षा का, शय्या-संस्तरण-विहार-चातुर्मासभाषा-वस्त्र-पात्रादि उपकरणों का वर्णन है। महाव्रत और उससे संबंधित पच्चीस भावनाओं के स्वरूप का विस्तृत वर्णन है।
(२) श्री सूत्रकृताङ्ग ८४ से किं तं सूअगडे ?
सूअगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोआलोए सूइज्जइ जीवा सूइज्जति अजीवा सूइन्जंति, ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, समय-परसमए सूइज्जइ।
सूअगडे णं असीअस्स किरियावाइयस्स, चउरासीईए अकिरिआवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणिअवाईणं, बत्तीसाए वेणइअवाईणं, तिण्हं तेसट्ठाणं पासंडिअसयाणं बूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ।
सूअगडे णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजसिलोगा, संखिजाओ निजुत्तीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए बिइए अंगे, दो सुअक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, पण्णविजंति परूविजंति दंसिज्जंति, निदंसिजंति उवदंसिजंति।