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________________ १८० ] करने वाले तरल पदार्थों को नाली आदि में प्रवाहित न करना । [ नन्दीसूत्र गुप्ति मन, वचन एवं काय से हिंसा, झूठ, चौर्य, मैथुन और परिग्रह, इन पापों का सेवन अनुकूल समय मिलने पर भी न करना गुति अथवा निवृत्तिधर्म कहलाता है । इस प्रकार प्रशस्त में प्रवृत्ति करना और अप्रशस्त कहलाता है । निवृत्ति पाना क्रमशः समिति और गुप्ति (४) तपाचार - विषय - कषायादि से मन को हटाने के लिए और राग-द्वेषादि पर विजय प्राप्त करने के लिए जिन-जिन उपायों द्वारा शरीर, इन्द्रिय और मन को तपाया जाता है, या इच्छाओं पर अंकुश लगाया जाता है, वे उपाय तप कहलाते हैं। तप के द्वारा असत् प्रवृत्तियों के स्थान पर सत् प्रवृत्तियाँ जीवन में कार्य करने लगती हैं तथा सम्पूर्ण कर्मों का क्षय हो जाने पर आत्मा मुक्त बनती है। तप ही संवर और निर्जरा का हेतु तथा मुक्ति का प्रदाता है। इसके दो भेद हैं—बाह्य तथा आभ्यंतर । दोनों के भी छह-छह प्रकार । बाह्य तप के निम्न प्रकार हैं (१) अनशन - संयम की पुष्टि, राग के उच्छेद और धर्म ध्यान की वृद्धि के लिये परिमित समय या विशिष्ट परिस्थिति में आजीवन आहार का त्याग करना । (२) ऊनोदरी — भूख से कम खाना । (३) वृत्तिपरिसंख्यान — एक घर, एक मार्ग अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप अभिग्रह धारण करना । इसके द्वारा चित्तवृत्ति स्थिर होती है तथा आसक्ति मिट जाती है । (४) रसपरित्याग—– रागवर्धक रसों का परित्याग करने से लोलुपता कम होती है । (५) कायक्लेश— शीत-उष्ण परीषह सहन करना तथा आतापना लेना कायक्लेश कहलाता है । इसे तितिक्षा एवं प्रभावना के लिए करते हैं । (६) इन्द्रियप्रतिसंलीनता —— यह स्वाध्याय - ध्यान आदि की वृद्धि के लिए किया जाने वाला तप है। आभ्यन्तर तप इस प्रकार हैं (१) प्रायश्चित्त—- पश्चात्ताप करते हुए प्रमादजन्य पापों के निवारण के लिए यह तप किया जाता है। (२) विनय — गुरुजनों का एवं उच्चचारित्र के धारक महापुरुषों का विनय करना तप है । (३) वैयावृत्त्य स्थविर, रुग्ण, तपस्वी, नवदीक्षित एवं पूज्य पुरुषों की यथाशक्ति सेवा करना । (४) स्वाध्याय - पाँच प्रकार से स्वाध्याय करना । इसका महत्त्व अनुपम है। (५) ध्यान — धर्म एवं शुक्ल ध्यान में तल्लीन होना ।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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