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________________ श्रुतज्ञान] [१७५ __ अहवा जस्स जत्तिआ सीसा उप्पत्तिआए, वेणइआए, कम्मियाए, पारिणामिआए चउव्विहाए बुद्धीए उववेआ, तस्स तत्तिआई पइण्णगसहस्साइं। पत्तेअबुद्धा वि तत्तिआ चेव, से तं कालि। से तं आवस्सयवइरित्तं। से तं अणंगपविटुं। ८१–कालिक-श्रुत कितने प्रकार का है। कालिक-श्रुत अनेक प्रकार का प्रतिपादित किया गया है?, जैसे—(१) उत्तराध्ययन सूत्र (२) दशाश्रुतस्कंध (३) कल्प-बृहत्कल्प (४) व्यवहार (५) निशीथ (६) महानिशीथ (७) ऋषिभाषित (८) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (९) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (१०) चन्द्रप्रज्ञप्ति (११) क्षुद्रिकाविमानविभक्ति (१२) महल्लिकाविमानप्रविभक्ति (१३) अङ्गचूलिका (१४) वर्गचूलिका (१५) विवाहचूलिका (१६) अरुणोपपात (१७) वरुणोपपात (१८) गरुडोपपात (१९) धरणोपपात (२०) वैश्रमणोपपात (२१) वेलन्धरोपपात (२२) देवेन्द्रोपपात (२३) उत्थानश्रुत (२४) समुत्थानश्रुत (२५) नागपरिज्ञापनिका (२६) निरयावलिका (२७) कल्पिका (२८) कल्पावतंसिका (२९) पुष्पिता (३०) पुष्पचूलिका और (३१) वृष्णिदशा (अन्धकवृष्णिदशा) आदि। चौरासी हजार प्रकीर्णक अर्हत् भगवान् श्रीऋषभदेव स्वामी आदि तीर्थंकर के हैं तथा संख्यात सहस्र प्रकीर्णक मध्यम तीर्थंकरों के हैं। चौदह हजार प्रकीर्णक भगवान् महावीर स्वामी के हैं। इनके अतिरिक्त जिस तीर्थंकर के जितने शिष्य औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी बुद्धि से युक्त हैं, उनके उतने ही हजार प्रकीर्णक होते हैं। प्रत्येकबुद्ध भी उतने ही होते कालिकश्रुत है। ___ इस प्रकार आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत का वर्णन हुआ और अनङ्ग-प्रविष्ट श्रुत का स्वरूप भी सम्पूर्ण हुआ। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में कालिक सूत्रों के नामों का उल्लेख किया गया। इनके नामों से ही प्रायः इनके विषय का बोध हो जाता है तथापि कतिपय सूत्रों का विवरण इस प्रकार है उत्तराध्ययनसूत्र प्रसिद्ध है। इसमें छत्तीस अध्ययन हैं, इसमें सैद्धान्तिक, नैतिक, सुभाषितात्मक तथा कथात्मक वर्णन है। प्रत्येक अध्ययन अति महत्त्वपूर्ण है। निशीथ इसमें पापों के प्रायश्चित्त का विधान है। जिस प्रकार रात्रि के अन्धकार को प्रकाश दूर करता है, उसी प्रकार अतिचार (पाप) रूपी अन्धेरे को प्रायश्चित्तरूप प्रकाश मिटाता अङ्गचूलिका—यह आचारांग आदि अंगों की चूलिका है। चूलिका का अर्थ होता है—उक्त या अनुक्त अर्थों का संग्रह। यह सूत्र अंगों से संबंधित है। आचारांग सूत्र की पाँच चूलिकाएँ हैं। एक चूलिका दृष्टिवादान्तर्गत भी है। वर्गचूलिका—जैसे अन्तकृत् सूत्र के आठ वर्ग है, उनकी चूलिका तथा अनुत्तरौपपातिक दशा के तीन वर्ग हैं, उनकी चूलिका।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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