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________________ [ नन्दीसूत्र गणिविद्या- गच्छ व गण के नायक गणी के क्या-क्या कर्त्तव्य हैं, तथा उसके लिए कौनकौन-सी विद्याएँ अधिक उपयोगी हैं? उन सबके नाम तथा उनकी आराधना का वर्णन किया गया है । १७४] ध्यानविभक्ति-— इसमें आर्त्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल, इन चारों ध्यानों का विवरण है। मरणविभक्ति-— इसमें अकाममरण, सकाममरण, बालमरण और पण्डितमरण आदि के विषय में बतलाते हुए कहा है कि किस प्रकार मृत्युकाल में समभावपूर्वक उत्तम परिणामों के साथ निडरतापूर्वक मृत्यु का आलिंगन करना चाहिए । आत्मविशोधि—इस सूत्र में आत्म-विशुद्धि विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है। वीतरागश्रुत- इसमें वीतराग का स्वरूप बताया गया है। संलेखनाथश्रुत इसमें, द्रव्य संलेखना, जिसमें अशन आदि आहारों का त्याग किया जाता है और भावसंलेखना, जिसमें कषायों का परित्याग किया जाता है, इसका विवरण है। विहारकल्प — इसमें स्थविरकल्प का विस्तृत वर्णन है । चरणविधि इसमें चारित्र के भेद-प्रभेदों का उल्लेख किया गया है। आतुरप्रत्याख्यान—– रुग्णावस्था में प्रत्याख्यान आदि करने का विधान है। महाप्रत्याख्यान—इस सूत्र में जिनकल्प, स्थविरकल्प तथा एकाकी विहारकल्प में प्रत्याख्यान का विधान है। इस प्रकार उत्कालिक सूत्रों में उनके नाम के अनुसार वर्णन है । किन्हीं का पदार्थ एवं मूलार्थ में भाव बताया गया है तथा किन्हीं की व्याख्या पूर्व में दी जा चुकी है। इनमें से कतिपय सूत्र अब उपलब्ध नहीं है किन्तु जो श्रुत द्वादशाङ्ग गणिपिटक के अनुसार है, वह पूर्णतया प्रामाणिक हैं। जो स्वमतिकल्पना से प्रणीत और आगमों से विपरीत है, वह प्रमाण की कोटि में नहीं आता । ८१ – से किं तं कालियं ? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं तं जहा (१) उत्तरज्झयणाई (२) दसाओ (३) कप्पो (४) ववहारो (५) निसीहं (६) महानिसीहं ( ७ ) इसिभासिआई (८) जंबूदीवपन्नत्ती (९) दीवसागरपन्नत्ती (१०) चंदपन्नत्ती (११) खुड्डिआविमाणविभत्ती (१२) महल्लिआविमाणविभत्ती (१३) अंगचूलिआ (१४) वग्गचूलिआ (१५) विआहचूलिआ (१६) अरुणोववाए (१७) वरुणोववाए (१८) गरुलोववाए (१९) धरणोववाए ( २० ) वेसमणोववाए (२१) वेलंधरोववाए (२२) देविंदोववाए (२३) उट्ठाणसुए (२४) समुट्ठाणसुए (२५) नागपरिआवणिआओ ( २६ ) निरयावलियाओ (२७) कप्पिआओ (२८) क्रप्पवडिंसिआओ (२९) पुष्फिआओ (३० ) पुप्फचूलिआओ (३१) वण्हीदसाओ, एवमाइयाई, चउरासीइं पन्नगसहस्साइं भगवओ अरहओ सहसामिस्सा आइतित्थयरस्स, तहा संखिज्जाई पइन्नगसहस्साइं मज्झिमगाणं जिणवराणं, चोद्दसपइन्नगसहस्साणि भगवओ वद्धमाणसामिस्स ।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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