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________________ प्रस्तावना (प्रथम संस्करण से) विजयमुनि शास्त्री आगमों की दार्शनिक पृष्ठ-भूमि वेद, जिन और बुद्ध भारत की दर्शन-परम्परा, भारत की धर्म-परम्परा और भारत की संस्कृति के ये मूलस्रोत हैं। हिन्दू-धर्म के विश्वास के अनुसार वेद ईश्वर की वाणी हैं। वेदों का उपदेष्टा कोई व्यक्ति-विशेष नहीं था, स्वयं ईश्वर ने उसका उपदेश किया था। अथवा वेद ऋषियों की वाणी है, ऋषियों के उपदेशों का संग्रह है। वैदिक परम्परा का जितना भी साहित्य-विस्तार है, वह सब वेद-मूलक है। वेद और उसका परिवार संस्कृत भाषा में है। अतः वैदिक-संस्कृति के विचारों की अभिव्यक्ति संस्कृत भाषा से ही हुई है। बुद्ध ने अपने जीवनकाल में अपने भक्तों को जो उपदेश दिया था—त्रिपिटक उसी का संकलन है। बुद्ध की वाणी को त्रि-पिटक कहा जाता है। बौद्ध-परम्परा के समग्र विचार और समस्त विश्वासों का मूल त्रि-पिटक है। बौद्ध-परम्परा का साहित्य भी बहुत विशाल है, परन्तु पिटकों में बौद्ध संस्कृति के विचारों का समग्र सार आ जाता है। बुद्ध ने अपना उपदेश भगवान् महावीर की तरह उस युग की जनभाषा में दिया था। बुद्धिवादी वर्ग की उस युग में, यह एक बहुत बड़ी क्रान्ति थी। बुद्ध ने जिस भाषा में उपदेश दिया, उसको पालि कहते हैं। अतः पिटकों की भाषा, पालि भाषा है। जिन की वाणी को अथवा जिन के उपदेश को आगम कहा जाता है। महावीर की वाणी आगम है। जिन की वाणी में, जिन के उपदेश में जिनको विश्वास है, वह जैन है। राग और द्वेष के विजेता को जिन कहते हैं। भगवान् महावीर ने राग और द्वेष पर विजय प्राप्त की थी। अत: वे जिन थे, तीर्थंकर भी थे। तीर्थंकर की वाणी को जैन परम्परा में आगम कहते हैं। भगवान् महावीर के समग्र विचार और समस्त विश्वास तथा समस्त आचार का संग्रह जिसमें है उसे द्वादशांगवाणी कहते हैं। भगवान् ने अपना उपदेश उस युग की जनभाषा में, जन-बोली में दिया था। जिस भाषा में भगवान् महावीर ने अपना विश्वास, अपना विचार, अपना आचार व्यक्त किया था, उस भाषा को अर्द्ध-मागधी कहते हैं। जैन परम्परा के विश्वास के अनुसार अर्द्ध मागधी को देव-वाणी भी कहते हैं। जैन-परम्परा का साहित्य बहुत विशाल है। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, हिन्दी, तमिल, कन्नड़, मराठी और अन्य प्रान्तीय भाषाओं में भी विराट् साहित्य लिखा गया है। आगम-युग का कालमान भगवान् महावीर के निर्वाण अर्थात् विक्रम पूर्व ७७० से प्रारम्भ होकर प्रायः एक हजार वर्ष तक माना जाता है। वैसे किसी न किसी रूप में आगम-युग की परम्परा वर्तमान युग में चली आ रही है। आगमों में जीवन सम्बन्धी सभी विषयों का प्रतिपादन किया गया है। परन्तु यहाँ पर आगमकाल में दर्शन की स्थिति क्या थी, यह बतलाना भी अभीष्ट है। जिन आगमों में दर्शन-शास्त्र के मूल तत्त्वों का प्रतिपादन किया गया, उनमें से मुख्य आगम हैं—सूत्रकृतांग, भगवती, स्थानांग, समवायांग, प्रज्ञापना, राजप्रश्नीय, नंदी और अनुयोगद्वार। सूत्रकृतांग में तत्कालीन अन्य दार्शनिक विचारों का निराकरण करके स्वमत की प्ररूपणा की गई है। भूतवादियों का निराकरण करके आत्मा का अस्तित्व बतलाया है। ब्रह्मवाद के स्थान में नाना आत्मवाद स्थिर किया है। जीव और (१७)
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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