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________________ १५६] [नन्दीसूत्र सपर्यवसितश्रुत (१०) अपर्यवसितश्रुत (११) गमिकश्रुत (१२) अगमिकश्रुत (१३) अङ्गप्रविष्टश्रुत (१४) अनङ्गप्रविष्टश्रुत। विवेचन–श्रुतज्ञान भी मतिज्ञान की तरह परोक्ष है। श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है इसलिये सूत्रकार ने मतिज्ञान के पश्चात् श्रुतज्ञान का वर्णन किया है। उल्लिखित सूत्र में श्रुतज्ञान के चौदह भेदों का नामोल्लेख किया गया है। इन सभी की व्याख्या सूत्रकार क्रमशः आगे करेंगे। यहां शंका उत्पन्न होती है कि जब अक्षरश्रुत और अनक्षरश्रुत में शेष सभी भेदों का समावेश हो जाता है तो फिर बारह भेदों का उल्लेख क्यों किया गया है? ___ इस शंका का समाधान इस प्रकार है-जिज्ञासु मनुष्य दो प्रकार के होते हैं—व्युत्पन्नमतिवाले और अव्युत्पन्नमतिवाले। अव्युत्पन्नमतियुक्त व्यक्तियों के विशिष्ट बोध हेतु बारह भेदों का निरूपण किया गया है, क्योंकि वे अक्षरश्रत और अनक्षरश्रत, इन दो के द्वारा समग्र श्रृत का ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। सूत्रकार ने उनकी अनुकम्पा के लिये शेष भेदों का उल्लेख किया है। अक्षरश्रुत ७३-से किं तं अक्खरसुअं? अक्षरसुअंतिविहं पनत्तं, तं जहा (१) सनक्खरं (२) वंजणक्खरं (३) लद्धिअक्खरं। (१) से किं तं सन्नक्खरं ? अक्खरस्स संठाणागिई, से त्तं सनक्क्ख रं। (२) से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरं अक्खरस्स वंजणाभिलावो, से तं वंजणक्खरं। (३) से किं तं लद्धिअक्खरं ? लद्धि-अक्खरं अक्खर-लद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पज्जइ, तं जहा सोइन्दिय-लद्धि-अक्खरं, चक्खिदिय-लद्धि-अक्खरं, घाणिंदिय-लद्धिअक्खरं, रसणिंदिय-लद्धि-अक्खरं, नोइंदिय-लद्धि-अक्खरं। से तं लद्धि-अक्खरं, से तं अक्खरसुअं। ७३—अक्षरश्रुत कितने प्रकार का है? अक्षरश्रुत तीन प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे—(१) संज्ञा-अक्षर (२) व्यञ्जन-अक्षर और (३) लब्धि -अक्षर। (१) संज्ञा-अक्षर किस तरह का है ? अक्षर का संस्थान या आकृति आदि, जो विभिन्न लिपियों में लिखे जाते हैं, वे संज्ञा-अक्षर कहलाते हैं। (२) व्यञ्जन-अक्षर क्या है ? उच्चारण किए जाने वाले अक्षर व्यंजन-अक्षर कहे जाते हैं। (३) लब्धि-अक्षर क्या है? अक्षर-लब्धि वाले जीव को लब्धि-अक्षर उत्पन्न होता है अर्थात् भावरूप श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है। जैसे श्रोत्रेन्द्रियलब्धि-अक्षर, चक्षुरिन्द्रियलब्धि-अक्षर, घ्राणेन्द्रियलब्धि-अक्षर, रसनेन्द्रियलब्धि-अक्षर, स्पर्शनेन्द्रियलब्धि-अक्षर, नोइन्द्रियलब्धि-अक्षर। यह लब्धिअक्षर श्रुत है। इस प्रकार अक्षरश्रुत का वर्णन है।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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