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[नन्दीसूत्र भी असंख्यात काल पर्यन्त रह सतकी है।
धारणा की प्रबलता से प्रत्यभिज्ञान तथा जाति-स्मरण ज्ञान भी हो सकता है। अवाय हो जाने पर भी अगर उपयोग उस विषय में लगा रहे तो उसे अवाय नहीं वरन अविच्युति धारणा कहते हैं।
अविच्युति धारणा से वासना उत्पन्न होती है। वासना जितनी दृढ़ होगी, निमित्त मिलने पर यह स्मृति को अधिकाधिक उद्बोधित करने में कारण बनेगी। भाष्यकार ने उक्त चारों का कालमान निम्न प्रकार से बताया है
अत्थोग्गहो जहन्नं समओ, सेसोग्गहादओ वीसुं।
अन्तोमुत्तमेगन्तु, वासणा धारणं मोत्तुं॥ -इस गाथा का भाव पूर्व में आ चुका है।
व्यंजनावग्रह : प्रतिबोधक का दृष्टान्त ६२–एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि, पडिबोहगदिटुंतेण मल्लगदिटुंतेण य।
से किं तं पडिबोहगदिटुंतेणं ?
पडिबोहगदिटुंतेणं, से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा "अमुगा! अमुगत्ति!!" तत्थ चोयगे पन्नवगं एवं वयासी—किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? जाव दससमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? . संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? .
एवं वदंतं चोयगं पण्णवए एवं वयासी नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से तं पडिबोहगदिद्रुतेणं।
६२–चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध आभिनिबोधक-मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूंगा।
प्रतिबोधक के उदाहरण से व्यंजन-अवग्रह का निरूपण किस प्रकार है ?
प्रतिबोधक का दृष्टान्त इस प्रकार है-"कोई व्यक्ति किसी सुप्त पुरुष को 'हे अमुक! हे अमुक!!' इस प्रकार कह कर जगाए। शिष्य ने तब पुनः प्रश्न किया 'भगवन् ! क्या ऐसा संबोधन करने पर उस पुरुष के कानों में एक समय में प्रवेश किए हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं या दो समय में अथवा दस समयों में, संख्यात समयों में या असंख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण