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________________ १४०] [नन्दीसूत्र नाम शब्दनय की दृष्टि से एक ही अर्थयुक्त समझने चाहिये। समभिरूढ तथा एवंभूत नय की दृष्टि से पाँचों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। नाणाघोसा—अवग्रह के जो पाँच पर्यायान्तर बताए गए हैं, उनका उच्चारण भिन्न-भिन्न है। नाणावंजना—अवग्रह के उक्त पाँचों नामों में स्वर और व्यंजन भिन्न-भिन्न हैं। (२) ईहा ५८-से किं तं ईहा ? ईहा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा (१) सोइंदिय-ईहा (२) चक्खिदिय-ईहा (३) घाणिंदिय-ईहा (४) जिभिदिय-ईहा (५) फासिंदिय-ईहा (६) नोइंदियईहा। तीसे णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा (१) आभोगणया (२) मग्गणया (३) गवेसणया (४) चिंता, (५) वीमंसा, से त्तं ईहा। ५८-भगवन् ! वह ईहा कितने प्रकार की है? ईहा छह प्रकार की कही गई है। जैसे—(१) श्रोत्रेन्द्रिय-ईहा (२) चक्षु-इन्द्रिय-ईहा (३) घ्राण-इन्द्रिय-ईहा (४) जिह्वा-इन्द्रिय-ईहा (५) स्पर्श-इन्द्रिय-ईहा और (६) नोइन्द्रिय-ईहा। ईहा के एकार्थक, नानाघोष और नाना व्यंजन वाले पाँच नाम इस प्रकार हैं(१) आभोगनता (२) मार्गणता (३) गवेषणता (४) चिन्ता तथा (५) विमर्श। विवेचन—एकार्थक, नानाघोष तथा नाना व्यंजनों से युक्त ईहा के पांच नामों का विवरण इस प्राकर है (१) आभोगनता अर्थावग्रह के अनन्तर सद्भूत अर्थविशेष के अभिमुख पर्यालोचन को आभोगनता कहा जाता है। टीकाकार कहते हैं-"आभोगनं—अर्थावग्रह-समनन्तरमेव सद्भूतार्थविशेषाभिमुखमालोचनं, तस्य भावः आभोगनता।" (२) मार्गणता—अन्वय एवं व्यतिरेक धर्मों के द्वारा पदार्थों के अन्वेषण करने को मार्गणा कहते हैं। (३) गवेषणता व्यतिरेक धर्म का त्याग कर, अन्वय धर्म के साथ पदार्थों के पर्यालोचन करने को गवेषणता कहा गया है। (४) चिन्ता–पुनः पुनः विशिष्ट क्षयोपशम से स्वधर्मानुगत सद्भूतार्थ के विशेष चिन्तन को चिन्ता कहते हैं। कहा भी है—"ततो मुहुर्मुहुः क्षयोपशमविशेषतः स्वधर्मानुगतसद्भूतार्थविशेषचिन्तनं चिन्ता।" (५) विमर्श "तत ऊर्ध्व क्षयोपशमविशेषात् स्पष्टतरं सद्भूतार्थविशेषाभि-मुखव्यतिरेकधर्मपरित्यागतोऽन्वयधर्मापरित्यागतोऽन्वयधर्मविमर्शनं विमर्शः। " अर्थात् –क्षयोपशमविशेष से स्पष्टतर—सद्भूतार्थ के अभिमुख, व्यतिरेक धर्म को त्याग कर और अन्वय धर्म को ग्रहण करके स्पष्टतया विचार करना विमर्श कहलाता है।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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