SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मतिज्ञान] [१४१ (३)अवाय ५९–से किं तं अवाए ? अवाए छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा (१) सोइंदियअवाए (२) चक्खिदयअवाए (३) घाणिंदियअवाए (४) जिभिदियअवाए (५) फासिंदियअवाए (६) नोइंदियअवाए। तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा, नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा—(१) आउट्टणया (२) पच्चाउट्टणया (३) अवाए (४) बुद्धी (५) विण्णाणे। से तं अवाए। ५९–अवाय मतिज्ञान कितने प्रकार का है ? अवाय छह प्रकार का है, जैसे—(१) श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय (२) चक्षुरिन्द्रिय-अवाय (३) घ्राणेन्द्रिय-अवाय (४) रसनेन्द्रिय-अवाय (५) स्पर्शेन्द्रिय-अवाय (६) नोइन्द्रिय-अवाय। __ अवाय के एकार्थक, नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले पाँच नाम इस प्रकार हैं—(१) आवर्तनता (२) प्रत्यावर्त्तनता (३) अवाय (४) बुद्धि (५) विज्ञान। यह अवाय का वर्णन हुआ। विवेचन-इस सूत्र में अवाय और उसके भेद तथा पर्यायान्तर बताए गए हैं। ईहा के पश्चात् विशिष्ट बोध कराने वाला ज्ञान अवाय है। इसके पाँच नाम निम्न प्रकार हैं (१) आवर्त्तनता—ईहा के पश्चात् निश्चय के सन्मुख बोधरूप परिणाम से पदार्थों के विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने के सन्मुख ज्ञान को आवर्तनता कहते हैं। (२) प्रत्यावर्त्तनता आवर्त्तनता के पश्चात्-अपाय-निश्चय के सन्निकट पहुँचा हुआ उपयोग प्रत्यावर्त्तनता कहलाता है। (३) अवाय-पदार्थों के पूर्ण निश्चय को अवाय कहते हैं। (४) बुद्धि निश्चित ज्ञान को क्षयोपशम-विशेष से स्पष्टतर जानना। (५) विज्ञान विशिष्टतर निश्चय किये हुए ज्ञान को, जो तीव्र धारणा का कारण हो उसे । विज्ञान कहते हैं। बुद्धि और विज्ञान से ही पदार्थों का सम्यक्तया निश्चय होता है। (४)धारणा ६०' से किं तं धारणा ? धारणा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा (१) सोइंदिय-धारणा (२) चक्खिदिय-धारणा (३) पाणिंदिय-धारणा (४) जिभिदिय-धारणा (५) फासिंदिय-धारणा (६) नोइंदियधारणा। तीसे णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा, नाणावंजणा, पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा (१) धारणा (२) साधारणा (३) ठवणा (४) पइट्ठा (५) कोठे। से तं धारणा। ६०-धारणा कितने प्रकार की है ?
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy