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________________ १३६] - [नन्दीसूत्र शब्दों में अवग्रह से कुछ आगे और अवाय से पूर्व सत्-रूप अर्थ की पर्यालोचनरूप चेष्टा ही ईहा कहलाती है। (३) अवाय निश्चयात्मक या निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय कहते हैं। प्रमाणनयतत्त्वालोक में अवाय की व्याख्या की गई है—"ईहितविशेषनिर्णयोऽवायः।" । ___ अर्थात्-ईहा द्वारा जाने गए पदार्थ में विशेष का निर्णय हो जाना अवाय है। निश्चय और निर्णय आदि अवाय के ही पर्यायान्तर हैं। इसे "अपाय" भी कहते हैं। (४) धारणा "स एव दृढतमावस्थापनो धारणा।" —प्रमाणनयतत्त्वालोक —जब अवाय ज्ञान अत्यन्त दृढ़ हो जाता है, तब उसे धारणा कहते हैं। निश्चय तो कुछ काल तक स्थिर रहता है फिर विषयान्तर में उपयोग के चले जाने पर वह लुप्त हो जाता है। किन्तु उससे ऐसे संस्कार पड़ जाते हैं, जिनसे भविष्य में किसी निमित्त के मिल जाने पर निश्चित किए हुए विषय का स्मरण हो जाता है। उसे भी धारणा कहा जाता है। धारणा के तीन प्रकार होते हैं (१) अविच्युति—अवाय में लगे हुए उपयोग से च्युत न होना। अविच्युति धारणा का अधिक से अधिक काल अन्तर्मुहूर्त का होता है। छद्मस्थ का कोई भी उपयोग अन्तर्मुहूर्त से अधिक काल लक स्थिर नहीं रहता। (२) वासना अविच्युति से उत्पन्न संस्कार वासना कहलाती है। ये संस्कार संख्यात वर्ष की आयु वालों के संख्यात काल तक और असंख्यात काल की आयु वालों के असंख्यात काल तक भी रह सकते हैं। (३) स्मृति कालान्तर में किसी पदार्थ को देखने से अथवा किसी अन्य निमित्त के द्वारा संस्कार प्रबुद्ध होने से जो ज्ञान होता है, उसे स्मृति कहा जाता है। श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के ये चारों प्रकार क्रम से ही होते हैं। अवग्रह के बिना ईहा नहीं होती, ईहा के बिना अवाय (निश्चय) नहीं होता और अवाय के अभाव में धारणा नहीं हो सकती। (१) अवग्रह ५४-से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा अत्थुग्गहे य वंजणुग्गहे य। ॥ सूत्र० २८॥ प्रश्न-अवग्रह कितने प्रकार का है ? उत्तर—वह दो प्रकार से प्रतिपादित किया गया है- (१) अर्थावग्रह (२) व्यंजनावग्रह। विवेचन सूत्र में अवग्रह के दो भेद बताए गए हैं, एक अर्थावग्रह और दूसरा व्यंजनावग्रह। 'अर्थ' वस्तु को कहते हैं। वस्तु और द्रव्य, ये दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। जिसमें सामान्य और विशेष
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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