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________________ १३४] [नन्दीसूत्र कूलबालक सदैव गुरु की आज्ञा से विपरीत ही कार्य करता था। उनकी इस बात को भी झूठा साबित करने के लिए वह एक निर्जन प्रदेश में चला गया। वहाँ स्त्री तो क्या पुरुष भी नहीं रहते थे। वहीं एक नदी के किनारे ध्यानस्थ होकर वह तपस्या करता था। आहार के लिए भी कभी वह गांव में नहीं जाता था अपितु संयोगवश कभी कोई यात्री उधर से गुजरता तो उससे कुछ प्राप्त करके शरीर को टिकाये रहता था। एक बार नदी में बड़े जोरों से बाढ़ आई, उसके बहाव में वह पलमात्र में बह सकता था, किन्तु उसकी घोर तपस्या के कारण ही नदी का बहाव दूसरी ओर हो गया। यह आश्चर्यजनक घटना देखकर लोगों ने उसका नाम 'कूलबालक मुनि' रख दिया। इधर जब राजा कुणिक ने मागधिका वेश्या को भेजा तो उसने पहले तो कूलबालक के स्थान का पता लगाया और फिर स्वयं ढोंगी श्राविका बनकर नदी के समीप ही रहने लगी। अपनी सेवाभक्ति के द्वारा उसने कूलबालक को आकर्षित किया तथा आहार लेने के लिए आग्रह किया। जब वह भिक्षा लेने के लिए मागधिका के यहाँ गया तो उसने खाने की वस्तुएं विरेचक औषधिमिश्रित दे दी, जिनके कारण कूलबालक को अतिसार की बीमारी हो गई। बीमारी के कारण वेश्या साधु की सेवा-शुश्रूषा करने लगी। इसी दौरान वेश्या के स्पर्श से साधु का मन विचलित हो गया और वह अपने चारित्र से भ्रष्ट हुआ। साधु की यह स्थिति अपने अनुकूल जानकर वेश्या उसे कुणिक के पास ले आई। कुणिक ने कूलबालक साधु से पूछा "विशाला नगरी का यह दृढ़ और महाकाय कोट कैसे तोड़ा जा सकता है?" कूलबालक अपने साधुत्व से भ्रष्ट तो हो ही चुका था, उसने नैमित्तिक का वेष धारण किया और राजा से बोला-"महाराज! राजा कुणिक ने हमारी नगरी के चारों ओर घेरा डाल रखा है, इस संकट से हमें कैसे छुटकारा मिल सकता है?" कूलबालक ने अपने ज्ञानाभ्यास द्वारा जान लिया था कि नगरी में जो स्तूप बना हुआ है, इसका प्रभाव जब तक रहेगा, कुणिक विजय प्राप्त नहीं कर सकता। अतः उन नगरवासियों के द्वारा ही छल से उसे गिरवाने का उपाय सोच लिया। वह बोला "भाइयो! तुम्हारी नगरी में अमुक स्थान पर जो स्तूप खड़ा है, जब तक वह नष्ट नहीं हो जायगा, तब तक कुणिक घेरा डाले रहेगा और तुम्हें संकट से मुक्ति नहीं मिलेगी। अतः इसे गिरा दो तो कुणिक हट जायेगा।" भोले नागरिकों ने नैमित्तिक की बात पर विश्वास करके स्तूप को तोड़ना प्रारम्भ कर दिया। इसी बीच कपटी नैमित्तिक ने सफेद वस्त्र हिलाकर अपनी योजनानुसार कुणिक को पीछे हटने का संकेत किया और कुणिक सेना को कुछ पीछे हटा ले गया। नागरिकों ने जब यह देखा कि स्तूप के थोड़ा सा तोड़ते ही कुणिक की सेना पीछे हट रही है तो उसे पूरी तरह भगा देने के लिये स्तूप को बड़े उत्साह से तोड़ना प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय में ही स्तूप धाराशायी हो गया। पर हुआ यह कि ज्योंही स्तूप टूटा, उसका नगर-कोट की दृढ़ता पर रहा हुआ प्रभाव समाप्त हो गया और कुणिक ने तुरन्त आगे बढ़कर कोट तोड़ते हुए विशाला पर अपना अधिकार कर लिया। कूलबालक साधु को अपने वश में कर लेने की पारिणामिकी बुद्धि वेश्या की थी और स्तूपभेदन कराकर कुणिक को विजय प्राप्त कराने में कूलबालक की पारिणामिकी बुद्धि ने कार्य किया।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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