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________________ मतिज्ञान] [१३३ विहल्लकुमार ने उत्तर में कहा "अगर आप हार और हाथी लेना चाहते हैं तो मेरे हिस्से का राज्य मुझे दे दीजिए।" कुणिक इस बात के लिए तैयार नहीं हुआ और उसने दोनों चीजें विहल्ल से जबर्दस्ती ले लेने का निश्चय किया। विहल्ल को इस बात का पता चला तो वह हार और हाथी लेकर रानियों के साथ अपने नाना राजा चेड़ा के पास विशाला नगरी में चला गया। राजा कुणिक को बड़ा क्रोध आया और उसने राजा चेड़ा के पास दूत द्वारा संदेश भेजा "राज्य की श्रेष्ठ वस्तुएँ राजा की होती हैं, अतः हार और हाथी सहित विहल्लकुमार व उसके अन्तःपुर को आप वापिस भेज दें अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ।" कुणिक के संदेश के उत्तर में चेड़ा ने कहलवा दिया—"जिस प्रकार राजा श्रेणिक व चेलना रानी का पुत्र कुणिक मेरा दौहित्र है, उसी प्रकार विहल्लकुमार भी है। विहल्ल को श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में ही ये दोनों चीजें प्रदान कर दी थीं, अतः उसी का अधिकार उन पर है। फिर भी अगर कुणिक इन दोनों को लेना चाहता है तो विहल्लकुमार को आधा राज्य दे दे। ऐसा न करने पर अगर वह युद्ध करना चाहे तो मैं भी तैयार हूँ।" राजा चेड़ा का उत्तर दूत ने कुणिक को ज्यों का त्यों कह सुनाया। सुनकर कुणिक क्रोध के मारे आपे में न रहा और अपने अन्य भाइयों के साथ विशाल सेना लेकर विशाला नगरी पर चढ़ाई करने के लिये चल दिया। राजा चेड़ा ने भी कई अन्य गण-राजाओं को साथ लेकर कुणिक का सामना करने के लिये युद्ध के मैदान की ओर प्रयाण किया। दोनों पक्षों में भीषण युद्ध हुआ और लाखों व्यक्ति काल-कवलित हो गये। इस युद्ध में राजा चेड़ा पराजित हुआ और वह पीछे हटकर विशाला नगरी में आ गया। नगरी के चारों ओर विशाल परकोटा था, जिसमें रहे हुए सब द्वार बंद करवा दिए गए। कुणिक ने परकोटे को जगहजगह से तोड़ने की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली। इस बीच आकाशवाणी हुई "अगर कूलबालक साधु मागधिक वेश्या के साथ रमण करे तो कुणिक नगरी का कोट गिराकर उस पर अपना अधिकार कर सकता है।" कुणिक आकाशवाणी सुनकर चकित हुआ पर उस पर विश्वास करते हुए उसने उसी समय मागधिका गणिका को लाने के लिए राज-सेवकों को दौड़ा दिया। मागधिका आ गई और राजा की आज्ञा शिरोधार्य करके वह कूलबालक मुनि को लाने चल दी। कूलबालक एक महाक्रोधी और दुष्ट-बुद्धि साधु था। जब वह अपने गुरु के साथ रहता था तो उनकी हितकारी शिक्षा का भी गलत अर्थ निकालकर उन पर क्रुद्ध होता रहता था। एक बार वह अपने गुरु के साथ किसी पहाड़ी मार्ग पर चल रहा था कि किसी बात पर क्रोध आते ही उसने गुरुजी को मार डालने के लिये एक बड़ा भारी पत्थर पीछे से उनकी ओर लुढ़का दिया। अपनी ओर पत्थर आता देखकर आचार्य तो एक ओर होकर उससे बच गए किन्तु शिष्य के ऐसे घृणित और असहनीय कृत्य पर कुपित होकर उन्होंने कहा "दुष्ट! किसी को मार डालने जैसा नीच कर्म भी तू कर सकता है? जा! तेरा पतन भी किसी स्त्री के द्वारा होगा।"
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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