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________________ १३२] [नन्दीसूत्र समभाव से सहन करता रहा। उसने बिल से बाहर अपना मुंह नहीं किया। जब आसपास के लोगों को इस बात का पता चला तो झुंड के झुंड बनाकर अब सर्प को देखने के लिए आने लगे। सर्प के शरीर पर पड़े घावों पर चींटियां और अन्य जीव इकट्ठे हो गये थे और उसके शरीर को उन सबने काट-काटकर चालनी के समान बना दिया था। पन्द्रह दिन तक चण्डकौशिक सर्प सब यातनाओं को शांति से सहता रहा। यहाँ तक कि उसने अपने शरीर को भी नहीं हिलाया, यह सोचकर कि मेरे हिलने से चींटियाँ अथवा अन्य छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े दब कर मर जायेंगे। पन्द्रह दिन पश्चात् अपने अनशन को पूरा कर वह मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा सहस्रार नामक आठवें देवलोक में उत्पन्न हुआ। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी। (२०) गेंडा—एक व्यक्ति ने युवावस्था में श्रावक के व्रतों को धारण किया किन्तु उन्हें सम्यक् प्रकार से पाल नहीं सका। कुछ काल पश्चात् वह रोगग्रस्त हो गया और अपने भंग किये हुए व्रतों की आलोचना नहीं कर पाया। वैसी स्थिति में जब उसकी मृत्यु हो गई तो धर्म से पतित होने के कारण एक जंगल में गेंडे के रूप में उत्पन्न हुआ। अपने क्रूर परिणामों के कारण वह जंगल के अन्य जीवों को तो मारता ही था, आने-जाने वाले मनुष्यों को भी मार डालता था। एक बार कुछ मुनि उस जंगल में से विहार करते हुए जा रहे थे। गेंडे ने ज्यों ही उन्हें देखा, क्रोधपूर्वक उन्हें मारने के लिए दौड़ा। किन्तु मुनियों के तप, तेज व अहिंसा आदि धर्म के प्रभाव से वह उन तक पहुँच नहीं पाया और अपने उद्देश्य में असफल रहा। गेंडा यह देखकर विचार में पड़ गया और अपने निस्तेज होने के कारण को खोजने लगा। धीरे-धीरे उसका क्रोध शांत हुआ और उसे ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से जातिस्मरण ज्ञान हो गया। अपने पूर्वभव को जानकर उसे बड़ी ग्लानि हुई और उसी समय उसने अनशन कर लिया। आयुष्य पूरा हो जाने पर वह देवलोक में देव हुआ। अपनी पारिणामिकी बुद्धि के कारण ही गेंडे ने देवत्व प्राप्त किया। . (२१) स्तूप-भेदन—कुणिक और विहल्लकुमार, दोनों ही राजा श्रेणिक के पुत्र थे। श्रेणिक ने अपने जीवकाल में ही सेचनक हाथी तथा वङ्कचूड़ हार दोनों विहल्लकुमार को दे दिये थे तथा कुणिक राजा बन गया था। विहल्लकुमार प्रतिदिन अपनी रानियों के साथ हाथी पर बैठकर जलक्रीडा के लिये गंगातट पर जाता था। हाथी रानियों को अपनी सूंड से उठाकर नाना प्रकार से उनका मनोरंजन करता था। विहल्लकुमार तथा उसकी रानियों की मनोरंजक क्रीडाएँ देखकर जनता भांति-भांति से उनकी सराहना करती थी तथा कहती थी कि राज्य-लक्ष्मी का सच्चा उपभोग तो विहल्लकुमार ही करता है। राजा कुणिक की रानी पद्मावती के मन में यह सब सुनकर ईर्ष्या होती थी। वह सोचती थी—महारानी मैं हूँ पर अधिक सुख-भोग विहल्लकुमार की रानियाँ करती हैं। उसने अपने पति राजा कुणिक से कहा-"यदि सेचनक हाथी और प्रसिद्ध हार मेरे पास नहीं है तो मैं रानी किस प्रकार कहला सकती हूँ? मुझे दोनों चीजें चाहिए।" कुणिक ने पहले तो पद्मावती की बात पर ध्यान नहीं दिया किन्तु उसके बार-बार आग्रह करने पर विहल्लकामर से हाथी और हार देने के लिये कहा।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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