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[नन्दीसूत्र के न देने पर वह दुखी होकर वहाँ के राजा के पास पहुँची। राजा ने सारी बात सुनी और सोचविचारकर कहा—'एक ओर बच्चे की माता को बैठाया जाये तथा दूसरी ओर उसके मुनि बन चुके पिता को। बच्चा दोनों में से जिसके पास चला जाये, उसी के पास रहेगा।'
अगले दिन ही राजसभा में यह प्रबंध किया गया। वज्र की माता सुनन्दा बच्चों को लुभाने वाले आकर्षक खिलौने तथा खाने-पीने की अनेक वस्तुएँ लेकर एक ओर बैठी तथा राजसभा के मध्य में बैठे हुए अपने पुत्र को अपनी ओर आने का संकेत करने लगी। किन्तु बालक ने सोचा-"अगर मैं माता के पास नहीं जाऊंगा तो यह मोहरहित होकर आत्म-कल्याण में जुट जायेगी। इससे हम दोनों का कल्याण होगा।" यह विचारकर बालक के न तो माता के समक्ष रखे हुए उत्तमोत्तम पदार्थों की ओर देखा और न ही वहां से इंच मात्र भी हिला। अब बारी आई उसके पिता मुनि धनगिरि की। मुनि ने बच्चे को संबोधित करते हुए कहा
जइसि कयझवसाओ, धम्मज्झयमूसिअं इमं वइर !
गिण्ह लहु रयहरणं, कम्म-रयपमज्जणं धीर !! अर्थात् हे वज्र ! अगर तुमने निश्चय कर लिया है तो धर्माचरण के चिह्नभूत और कर्मरज को प्रमार्जित करने वाले इस रजोहरण को ग्रहण करो।
ये शब्द सुनने की ही देर थी कि बालक ने तुरन्त अपने पिता की ओर जाकर रजोहरण उठा लिया।
यह देखकर राजा ने बालक आचार्य सिंहगिरि को सौंप दिया और उन्होंने उसी समय राजा एवं संघ की आज्ञा प्राप्त कर उसे दीक्षा प्रदान कर दी।
सुनन्दा ने विचार "जब मेरे पति, पुत्र एवं भाई सभी सांसारिक बंधनों को तोड़कर दीक्षित हो गए हैं तो मैं ही अकेली घर में रहकर क्या करूंगी?" बस, वह भी संयम लेने के लिये तैयार हो गई और आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हुई।
आचार्य सिंहगिरि ने अन्यत्र विहार कर दिया। वज्रमुनि बड़ा मेधावी था। जिस समय आचार्य अन्य मुनियों को वाचना देते, वह एकाग्र एवं दत्तचित्त होकर सुनता रहता। मात्र सुन सुनकर ही उसने ग्यारह अंगों का ज्ञान प्राप्त कर लिया और क्रमशः पूर्वो का भी ज्ञान प्राप्त किया।
एक बार आचार्य उपाश्रय से बाहर गए हुए थे। अन्य मुनि आहार के लिये निकल गये थे। तब वज्रमुनि ने, जो उस समय भी बालक ही थे, खेल-खेल में ही संतों के वस्त्र एवं पात्रादि को पंक्तिबद्ध रखा और स्वयं उनके मध्य में बैठ गये। तत्पश्चात् उन वस्त्र-पात्रों को ही अपने शिष्य मानकर वाचना देना प्रारंभ कर दिया। जब आचार्य बाहर से लौटे तो दूर से ही वाचना देने की ध्वनि सुनाई दी। वे वहीं रुककर सुनने लगे। उन्होंने वज्रमुनि की आवाज पहचानी और उनकी वाचना देने की शैली और ज्ञान को समझा। सभी कुछ देखकर वे घोर आश्चर्य में पड़ गये कि इतने छोटे से बालक मुनि को इतना ज्ञान कैसे हो गया ? और वाचना देने का इतना सुन्दर ढंग भी किस प्रकार