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________________ मतिज्ञान] [१२७ जानकर धनगिरि ने कहा "तुम्हारे जो पुत्र होगा उसके सहारे ही जीवनयापन करना, मैं अब दीक्षा ग्रहण करूंगा।" पति की उत्कट इच्छा के कारण सुनन्दा को स्वीकृति देनी पड़ी। धनगिरि ने आचार्य सिंहगिरि के पास जाकर मुनिवृत्ति धारण कर ली। सुनन्दा के भाई आर्यसमिति भी पहले से ही सिंहगिरि के पास दीक्षित थे। संत-मंडली ग्रामानुग्राम विचरण करने लगी। __ इधर नौ मास पूरे होने पर सुनन्दा ने एक पुण्यवान् पुत्र को जन्म दिया। जिस समय उसका जन्मोत्सव मनाया जा रहा था, किसी स्त्री ने करुणा से भरकर कहा-"इस बच्चे का पिता अगर मुनि न होकर आज यहाँ होता तो कितना अच्छा लगता?" बच्चे के कानों में यह बात गई तो उसे जातिस्मरण हो गया और वह विचार करने लगा "मेरे पिताजी ने तो मुक्ति का मार्ग अपना ही लिया है, अब मुझे भी कुछ ऐसा उपाय करना चाहिये जिससे संसार से मुक्त हो सकू तथा मेरी माँ भी सांसारिक बन्धनों से छुटकारा पा सके।" यह विचार कर उस बालक ने दिन-रात रोना प्रारंभ कर दिया। उसका रोना बंद करने के लिये उसकी माता तथा सभी स्वजनों ने अनेक प्रयत्न किये पर सफलता नहीं मिली। सुनन्दा बहुत ही परेशान हुई। संयोगवश उन्हीं दिनों आचार्य सिंहगिरि अपने शिष्यों सहित पुनः तुम्बवन पधारे। आहार का समय होने पर मुनि आर्यसमित तथा धनगिरि नगर की ओर जाने लगे। उसी समय शुभ शकुनों के आधार पर आचार्य ने उनसे कह दिया "आज तुम्हें महान् लाभ प्राप्त होगा, अतः जो कुछ भी भिक्षा में मिले, ले आना।" गुरु की आज्ञा स्वीकार कर दोनों मुनि शहर की ओर चल दिये। जिस समय मुनि सुनन्दा के घर पहुँचे, वह अपने रोते हुए शिशु को चुप करने के लिये प्रयत्न कर रही थी। मुनि धनगिरि ने झोली खोलकर आहार लेने के लिए पात्र बाहर रखा था। सुनन्दा के मन में एकाएक न जाने क्या विचार आया कि उसने बालक को पात्र में डाल दिया और कहा-"महाराज! अपने बच्चे को आप ही सम्हालें।" अनेक स्त्री-पुरुषों के सामने मुनि धनगिरि ने बालक को ग्रहण किया तथा बिना कुछ कहे झोली उठाकर मंथर गति से चल दिये। आश्चर्य सभी को इस बात का हुआ कि बालक ने भी रोना बिल्कुल बंद कर दिया था। ___आचार्य सिंहगिरि के समक्ष जब वे पहुँचे तो उन्होंने झोली को भारी देखकर पूछा-"यह वज्र जैसी भारी वस्त क्या लाये हो?" धनगिरि ने बालक सहित पात्र गरु के आगे रख दिया। गरु पात्र में तेजस्वी शिशु को देखकर चकित भी हुए और हर्षित भी। उन्होंने यह कहते हुए कि यह बालक आगे चलकर शासन का आधारभूत बनेगा, उसका नाम "वज्र" ही रख दिया। बच्चा छोटा था अतः उन्होंने उसके पालन-पोषण का भार संघ को सौंप दिया। शिशु वज्र चन्द्रमा की कलाओं के समान तेजोमय बनता हुआ दिन-प्रतिदिन बड़ा होने लगा। कुछ समय बाद सुनन्दा ने संघ से अपना पुत्र वापिस माँगा किन्तु संघ ने उसे 'अन्य की अमानत' कहकर देने से इन्कार कर दिया। मन मारकर सुनन्दा वापिस लौट आई और अवसर की प्रतीक्षा करने लगी। वह अवसर उसे तब प्राप्त हुआ, तब आचार्य सिंहगिरि विचरण करते हुए अपने शिष्य-समुदाय सहित पुनः तुम्बवन पधारे। सुनन्दा ने आचार्य के आगमन का समाचार सुनते ही उनके पास जाकर अपना पुत्र माँगा किन्तु आचार्य
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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