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________________ [ नन्दीसूत्र दूत के द्वारा चंडप्रद्योतन का यह संदेश सुनकर श्रेणिक आगबबूला हो गया और दूत से कहा—“ अवध्य होने के कारण तुम्हें छोड़ देता हूँ पर अपने राजा से जाकर कह देना कि यदि तुम अपनी कुशल चाहते हो तो अग्निरथ, अनिलगिरि हस्ती, वज्रजंघ दूत तथा शिवादेवी रानी, इन चारों को मेरे यहां शीघ्रातिशीघ्र भेज दो।" ११२] रानी चेलना को अविलम्ब मेरे पास भेज दो।' दूत के द्वारा यह उत्तर सुनते ही चंडप्रद्योतन भारी सेना लेकर राजगृह पर चढ़ाई करने के लिए रवाना हो गया और राजगृह के चारों ओर घेरा डाल दिया। श्रेणिक ने भी युद्ध करने की तैयारी करली। सेना सुसज्जित हो गई । किन्तु पारिणामिकी बुद्धि के धारक अभयकुमार ने अपने पिता श्रेणिक से नम्रतापूर्वक कहा - "महाराज ! अभी आप युद्ध करने का आदेश मत दीजिये, मैं कुछ ऐसा उपाय करूंगा कि " साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।" अर्थात् मौसा चंडप्रद्योतन स्वयं भाग जाएँ और हमारी सेना भी नष्ट न होने पाए। " श्रेणिक को अपने पुत्र पर विश्वास या अतः उसने अभयकुमार की बात मान ली । इधर रात्रि को ही अभयकुमार काफी धन लेकर नगर से बाहर आया और उसे चंडप्रद्योतन के डेरे के पीछे भूमि में गड़वा दिया। तत्पश्चात् वह चंडप्रद्योतन के समक्ष आया। प्रणाम करके बोला "मौसा जी ! आप किस फेर में हैं? इधर आप राजगृह को जीतने का स्वप्न देख रहे हैं और उधर आपके सभी वरिष्ठ सेनाधिकारियों को पिताजी ने घूस देकर अपनी ओर मिला लिया है । वे सूर्योदय होते ही आपको बन्दी बनाकर मेरे पिताजी के समक्ष उपस्थित कर देंगे । आप मेरे मौसा हैं, अतः आपको मैं धोखा खाकर अपमानित होते नहीं देख सकता । " चंडप्रद्योतन ने कुछ अविश्वासपूर्वक पूछा- "तुम्हारे पास इस बात का क्या प्रमाण है?" तब अभयकुमार ने उन्हें चुपचाप अपने साथ ले जाकर गड़ा हुआ धन निकाल कर दिखाया। धन देखकर चंडप्रद्योतन को अपनी सेना के मुख्याधिकारियों की गद्दारी का विश्वास हो गया और वह उसी समय घोड़े पर सवार होकर उज्जयिनी की ओर चल दिया । प्रातःकाल जब सेनापति आदि चंडप्रद्योतन के डेरे में राजगृह परं धावा करने की आज्ञा लेने के लिये आये तो डेरा खाली मिला। न राजा था और न उसका घोड़ा । सबने समझ लिया कि राजा वापिस नगर को लौट गये हैं। बिना दूल्हे की बारात के सामने सेना फिर क्या करती ! सभी वापिस उज्जयिनी लौट गये । वहाँ आने पर सभी उनके रातों रात लौट आने का कारण जानने के लिये महल में गए। राजा ने सभी को धोखेबाज समझकर मिलने से इंकार कर दिया । बहुत प्रार्थना करने पर और दयनीयता प्रदर्शित करने पर राजा उनसे मिला तथा गद्दारी के लिए फटकारने लगा। बेचारे पदाधिकारी घोर आश्चर्य में पड़ गए पर अन्त में विनम्र भाव एक ने कहा- "देव ! वर्षों से आपका नमक खा रहे हैं। भला हम इस प्रकार आपके साथ छल कर सकते हैं? यह चालबाजी अभयकुमार की ही है। उसने आपको भुलावे में डालकर अपने पिता का व राज्य का बचाव कर लिया है। "
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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