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________________ मतिज्ञान] [११३ चंडप्रद्योतन के गले में यह बात उतर गई। उसे अभयकुमार पर बड़ा क्रोध आया और नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि "जो कोई अभयकुमार को पकड़कर मेरे पास लायेगा उसे राज्य की ओर से बहुमूल्य पुरस्कार दिया जायेगा।" नगर में घोषणा तो हो गई किन्तु बिल्ली के गले में घंटी बाँधने जाए कौन ? राजा के मंत्री, सेनापति आदि से लेकर साधारण व्यक्ति तक सभी को मानो साँप सूंघ गया। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अभयकुमार को पकड़ने जाये। आखिर एक वेश्या ने यह कार्य करना स्वीकार किया और राजगृह जाकर वहाँ श्राविका के समान रहने लगी। कुछ काल बीतने पर उस पांखडी श्राविका ने एक दिन अभयकुमार को अपने यहाँ भोजन करने के लिये निमंत्रण भेजा। श्राविका समझकर अभयकुमार ने न्यौता स्वीकार कर लिया। वेश्या ने खाने की वस्तुओं में कोई नशीली चीज मिला दी। उसे खाते ही अभयकुमार मूर्छित हो गया। गणिका इसी पल की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने यकमार को अपने रथ में डलवाया और उज्जयिनी ले जाकर चंडप्रद्योतन राजा को सौंप दिया। राजा हर्षित हुआ तथा होश में आने पर अभयकुमार से व्यंगमिश्रित परिहासपूर्वक बोला-"क्यों बेटा! धोखेबाजी का फल मिल गया ? किस चतुराई से मैंने तुझे यहाँ पकड़वा मंगवाया ___ अभयकुमार ने तनिक भी घबराए बिना निर्भयतापूर्वक तत्काल उत्तर दिया "मौसाजी! आपने तो मुझे बेहोश होने पर रथ में डालकर यहाँ मंगवाया है किन्तु मैं तो आपको पूरे होशोहवास में रथ पर बैठाकर जूते मारता हुआ राजगृह ले जाऊंगा।" राजा ने अभय की बात को उपहास समझकर टाल दिया और उसे अपने यहाँ रख लिया, किन्तु अभयकुमार ने बदला लेने की ठान ली थी। वह मौके की ताक में रहने लगा। कुछ दिन बीत जाने पर अभयकुमार ने एक योजना बनाई। उसके अनुसार एक ऐसे व्यक्ति को खोज निकाला जिसकी आवाज ठीक चंडप्रद्योतन राजा जैसी थी। उस गरीब व्यक्ति को भारी इनाम का लालच देकर अपने पास रख लिया और अपनी योजना समझा दी। तत्पश्चात् एक दिन अभयकुमार उसे रथ पर बैठाकर नगरी के बीच से उसके सिर पर जूते मारता हुआ निकला। जूते खाने वाला चिल्लाकर कहता जा रहा था "अरे, अभयकुमार मुझे जूतों से पीट रहा है, कोई छुड़ाओ! मुझे बचाओ!' अपने राजा की जैसी आवाज सुनकर लोग दौड़े और उसे छुड़ाने लगे, किन्तु लोगों के आते ही जूते मारने वाला और जूते खाने वाला, दोनों ही खिलखिला कर हँस पड़े। अभयकुमार का खेल समझ लोग चुपचाप चल दिये। अभयकुमार निरंतर पांच दिन तक इसी प्रकार करता रहा। बाजार के व्यक्ति यह देखते पर कुमार की क्रीडा समझकर हँसते रहते। कोई उस व्यक्ति को छुड़ाने नहीं आता। छठे दिन मौका पाकर अभयकुमार ने राजा चंडप्रद्योतन को ही बाँध लिया और बलपूर्वक रथ पर बैठाकर सिर पर जूते मारता हुआ बीच बाजार से निकला। राजा चिल्ला रहा था-"अरे दौड़ो! दौड़ो!! पकड़ो! अभयकुमार मुझे जूते मारता हुआ ले जा रहा है।" लोगों ने देखा, किन्तु
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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