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मतिज्ञान]
[८७ के बाद श्रेणिक का विवाह अपनी सुयोग्य पुत्री नंदा के साथ कर दिया। पत्नी के साथ श्रेणिक सुखपूर्वक ससुराल में रहने लगा। कुछ ही समय के बाद नंदा गर्भवती हुई और यथाविधि गर्भ का संरक्षण करने लगी।
इधर बिना बताए श्रेणिक के चले जाने से राजा प्रसेनजित बहुत दुःखी हुए और चारों दिशाओं में उसकी खोज के लिए आदमी भेज दिये। पता लगने पर राजा ने कुछ सैनिक श्रेणिक को लिवा लाने के लिए वेत्रातट भेजे। सैनिकों ने जाकर श्रेणिक से प्रार्थना की "महाराज प्रसेनजित आपके वियोग में बहुत व्याकुल हैं। कृपा करके आप शीघ्र ही राजगृह पधारें।" श्रेणिक ने राजपुरुषों की प्रार्थना स्वीकार करके राजगृह जाने का निश्चय किया तथा अपनी पत्नी नंदा की सहमति लेकर और अपना विस्तृत परिचय लिखकर एक दिन राजगृह की ओर प्रस्थान किया।
इधर नंदा के गर्भ में देवलोक से च्युत होकर आए हुए जीव के पुण्य-प्रभाव से एक दिन नंदादेवी को दोहद उत्पन्न हुआ कि "मैं एक महान् हाथी पर आरूढ़ होकर नगर-जनों को धनदान और अभयदान दूं।" मन में यह भावना आने पर नंदा ने अपने पिता से अपनी इच्छा को पूर्ण करने की प्रार्थना की। पिता ने सहर्ष पुत्री के दोहद को पूर्ण किया। यथासमय नंदा की कुक्षि से एक अनुपम बालक ने जन्म लिया। बाल-रवि के समान सम्पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करने वाले बालक का जन्मोत्सव मनाया गया तथा उसका नाम "अभयकुमार" रखा गया। समय व्यतीत हो चला तथा अभयकुमार ने प्रारंभिक ज्ञान से लेकर अनेक शास्त्रों का अभ्यास करते हुए समस्त कलाओं का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया।
एक दिन अकस्मात् ही अभयकुमार ने अपनी माता से पूछा "माँ! मेरे पिता कौन हैं और कहाँ निवास करते हैं?" नंदा ने उपयुक्त समय समझकर अभयकुमार को उसके पिता श्रेणिक का परिचय-पत्र बताया तथा आद्योपान्त्य सारा वृत्तान्त भी कह सुनाया। पिता का परिचय पाकर अभयकुमार को अतीव प्रसन्नता हुई और वह उसी समय राजगृह जाने को व्यग्र हो उठा। माता के समक्ष उसे अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए सार्थ के साथ राजगृह जाने की आज्ञा मांगी। नंदादेवी ने अभयकुमार के साथ स्वयं भी चलना चाहा। परिणामस्वरूप अभयकुमार अपनी माता सहित सार्थ के साथ राजगृह की ओर चल दिया।
चलते-चलते राजगृह के बाहर पहुँचे। अभयकुमार ने अपनी माता को सार्थ की सुरक्षा में, नगर के बाहर एक सुन्दर स्थान पर छोड़कर स्वयं नगर में प्रवेश किया। यह जानने के लिये कि शहर का वातावरण कैसा है और किस प्रकार राजा के समक्ष पहुँचा जा सकता है।
नगर में प्रविष्ट होते ही अभयकुमार ने देखा कि एक जलरहित कुए के चारों ओर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो रही है। अभयकुमार ने एक व्यक्ति से लोगों के इकट्ठे होने का कारण पूछा। उस ने बताया- "इस सूखे कुए में राजा की स्वर्ण-मुद्रिका गिर गई है और राजा ने घोषणा की है कि जो व्यक्ति कूप के तट पर खड़ा रहकर अपने हाथ से अंगूठी निकाल देगा उसे महान् पारितोषिक दिया जायेगा। किन्तु यहाँ खड़े हुए व्यक्तियों में से किसी को भी उपाय नहीं सूझ रहा है अँगूठी