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________________ ८६ ] [ नन्दीसूत्र पानी भर आया। वे किसी प्रकार आम प्राप्त करने का उपाय सोचने लगे । वृक्ष पर बन्दर बैठे हुए थे और उनके डर से वृक्ष पर चढ़कर आम तोड़ना कठिन था । आखिर एक व्यक्ति की औत्पत्तिकी - बुद्धि ने काम दिया और उसने पत्थर उठा-उठाकर बन्दरों की ओर फेंकना प्रारम्भ कर दिया। बंदर चंचल और नकलची होते ही हैं। पत्थरों के बदले पत्थर न पांकर पेड़ से आम तोड़-तोड़कर नीचे ठहरे हुए व्यक्तियों की ओर फेंकने लगे। पथिकों को और क्या चाहिये था, मन- मांगी मुराद पूरी हुई। सभी ने जी भरकर आम खाये और मार्ग पर आगे बढ़ गये। (४) खड्डग (अंगूठी ) — राजगृह नामक नगर के राजा प्रसेनजित ने अपनी न्यायप्रियता एवं बुद्धिबल से समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। वह निष्कंटक राज्य कर रहा था । प्रतापी राजा प्रसेनजित के बहुत से पुत्र थे । उनमें एक श्रेणिक नामक पुत्र समस्त राजोचित गुणों से सम्पन्न अति सुन्दर और राजा का विशेष प्रेमपात्र था । किन्तु राजा प्रकट रूप से उस पर अपना प्रेम प्रदर्शित नहीं करता था । राजा को डर था कि पिता का प्रेम पात्र जानकर उसके अन्य भाई ईर्ष्यावश श्रेणिक को मार न डालें। किन्तु श्रेणिक बुद्धि सम्पन्न होने पर भी पिता व प्रेम व सम्मान न पाकर मन ही मन दु:खी व क्रोधित होते हुए घर छोड़ने का निश्चय कर बैठा । अपनी योजनानुसार एक दिन वह चुपचाप महल से निकल कर किसी अन्य देश में जाने के लिए रवाना हो गया। चलते-चलते वह वेन्नातट नामक नगर में पहुंचा और एक व्यापारी की दुकान पर जाकर कुछ विश्राम के लिए ठहर गया। दुर्भाग्यवश उस व्यापारी का सम्पूर्ण व्यापार और वैभव नष्ट हो चुका था, किन्तु जिस दिन श्रेणिक उसकी दुकान पर जाकर बैठा उस दिन उसका संचित माल, जिसे कोई पूछता भी न था, बहुत ऊँचे भाव पर बिका तथा विदेशों से व्यापारियों से लाए हुए रत्न अल्प मूल्य में प्राप्त हो गये । इस प्रकार अचिन्त्य लाभ हुआ देखकर व्यापारी के मन में विचार आया 'आज मुझे जो महान् लाभ प्राप्त हुआ है इसका कारण निश्चय ही यह पुण्यवान् बालक है । आज यह मेरी दुकान पर आकर बैठा हुआ है। कोई बड़ी महान् आत्मा है यह । यों भी कितना सुन्दर और तेजस्वी दिखाई देता है । ' संयोगवश उसी रात्रि को सेठ ने स्वप्न में देखा था कि उसकी पुत्री का विवाह एक 'रत्नाकर' से हो रहा है और अगले दिन ही जब श्रेणिक उसकी दुकान पर आकर बैठा और दिन भर में लाभ भी आशातीत हुआ तो सेठ को लगा कि यही वह रत्नाकर है । मन ही मन प्रमुदित होकर व्यापारी ने श्रेणिक से पूछ लिया- "आप यहाँ किसके गृह में अतिथि बन कर आए हैं?" श्रेणिक ने बड़े मधुर और विनम्र स्वर में उत्तर दिया- " श्रीमान् ! मैं आपका ही अतिथि हूँ ।" इस मधुर एवं आत्मीयतापूर्ण उत्तर को सुनकर सेठ का हृदय प्रफुल्लित हो गया । वह बड़े प्रेम से श्रेणिक को अपने घर ले गया। उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों से एवं भोजनादि से उसका सत्कार किया। घर में ही रहने का आग्रह किया । श्रेणिक को तो कहीं निवास करना ही था, वह उसी सेठ के यहाँ ठहर गया । सौभाग्यवश उसके पुण्य से सेठ की धन-सम्पत्ति, व्यापार एवं प्रतिष्ठा दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई तथा खोई हुई साख पुनः प्राप्त हो गई। परम आनन्द का अनुभव करते हुए सेठ ने कुछ ही दिनों
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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