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________________ मतिज्ञान] [८५ व्यक्तियों को साक्षी बना लिया गया। नागरिक धूर्त ने अपना वचन पूरा करने के लिए ग्रामीण की ककड़ियों में से प्रत्येक को उठाया तथा थोड़ा-थोड़ा खाकर सभी को जूठी करके रख दिया। तत्पश्चात् बोला "लो भाई! मैंने तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा लीं।" बेचारा ग्रामीण आंखें मल-मलकर देखने लगा कि कहीं उसे भ्रम तो नहीं हो रहा है? किन्तु भ्रम नहीं था, ककड़ियाँ तो थोड़ी-थोड़ी खाई हुई सभी सामने पड़ी थीं। इसलिए उसने कहा-"तुमने ककड़ियाँ कहाँ खाई हैं! सब तो पड़ी हैं।" धूर्त ने कहा "मैंने ककड़ियाँ खा ली हैं, इसका विश्वास अभी कराये देता हूँ।" ऐसा कहकर उसने ग्रामीण को साथ लेकर सारी ककड़ियाँ बाजार में बेचने के लिए रख दीं। ग्राहक आने लगे पर ककड़ियों को देखकर सभी लौट गये, यह कहकर कि ये ककड़िया तो खाई हुई हैं। लोगों की बातों के आधार पर नगर के धूर्त ने ग्रामीण से कहा- "देखो, सभी कह रहे हैं कि ककड़िया खाई हुई हैं। अब लाओ मेरा लड्डू।" धूर्त ने साक्षियों को भी इसी प्रकार विश्वास करने के लिए बाध्य कर दिया। ग्रामीण घबराया कि धूर्त ने ककड़ियाँ खाई भी नहीं और लड्डू भी मांग रहा है। अब कैसे इतना बड़ा लड्डू इसे दूं? भयभीत होकर उसने धूर्त को रुपया देकर पीछा छुड़ाना चाहा। वह उसे एक रुपया देने लगा, न लेने पर दो और इसी प्रकार सौ रुपये तक आ गया, किन्तु धूर्त ने रुपया लेने से इन्कार कर दिया। वह लडड लेने की ही माँग करता रहा। हारकर ग्रामीण ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए कुछ समय की मांग की और किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा जो उसे इस संकट से उबारे। आखिर उसे एक दूसरा धूर्त मिल गया जिसने चुटकियों में उसकी समस्या हल कर देने का आश्वासन दिया। उसी के कथनानुसार ग्रामीण ने बाजार जाकर एक छोटा सा लड्डू खरीदा। तत्पश्चात् वह धूर्त अन्य साक्षियों को बुला लाया। सबके आ जाने पर उसने लड्डू को नगर-द्वार के बाहर रख दिया और पुकारने लगा—“अरे लड्डू! चलो, ओ लड्डू, इधर इस दरवाजे में आओ।" पर लड्डू कहाँ चलने वाला था। वह तो जहाँ था वहीं पड़ा रहा। तब ग्रामीण ने उस नागरिक धूर्त को सभी साक्षियों के समक्ष संबोधित करते हुए कहा—'भाई! मैंने तुमसे प्रतिज्ञा की थी कि हार गया । ऐसा लड्डू दूंगा जो इस द्वार से नहीं निकल सके। अब तुम्ही देख लो यह लड्डू द्वार से नहीं निकल रहा है। चलो, अपना लड्डू ले जाओ। मैं प्रतिज्ञा से मुक्त हो गया हूँ।' नागरिक धूर्त कट कर रह गया। सारे साक्षी भी कुछ न कह सके। (३) वृक्ष कुछ यात्री एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हुए मार्ग में एक सघन आम्रवृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए ठहर गये। वृक्ष पर लगे हुए आमों को देखकर उनके मुँह में
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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