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________________ ८४] [नन्दीसूत्र (१४) पंच पियरो (पांच पिता) रात्रि व्यतीत हो गई। सूर्योदय से पूर्व जब मंगलवाद्य बजने लगे, राजा जाग गया किन्तु रोहक प्रगाढ निद्रा में सो रहा था। पुकारने पर जब वह नहीं जागा तो राजा ने अपनी छड़ी से उसे कुछ कौंचा। रोहक तुरन्त जाग गया। राजा ने कौतूहलवश पूछ लिया-"क्यों रोहक, अब क्या सोच रहा है?" इस बार रोहक ने बड़ा अजीब उत्तर दिया। बोला-'महाराज! मैं सोच रहा हूँ कि आपके पिता कितने हैं?' रोहक की बात सुनकर राजा चक्कर में पड़ गया किन्तु उसकी बुद्धि का कायल होने के कारण बिना क्रोध किये उसी से प्रश्न किया-"तुम्हीं बताओ मैं कितनों का पुत्र हूँ" रोहक ने उत्तर दिया-"महाराज! आप पाँच से पैदा हुए हैं। एक तो वैश्रमण से, क्योंकि आप कुबेर के समान उदारचित्त हैं। दूसरे चाण्डाल से, क्योंकि दुश्मनों के लिए आप चाण्डाल के समान क्रूर हैं। तीसरे धोबी से, जैसे धोबी गीले कपड़े को भली-भांति निचोड़कर, सारा पानी निकाल देता है, उसी तरह आप भी राजद्रोही और देशद्रोहियों का सर्वस्व हर लेते हैं। चौथे बिच्छू से, क्योंकि बिच्छू डंक माकर दूसरों को पीड़ा पहुँचाता है, वैसे ही मुझ निद्राधीन बालक को आपने छड़ी के अग्रभाग से कौंचकर कष्ट दिया है। पाँचवें, आप अपने पिता से पैदा हुए हैं, क्योंकि अपने पिता के समान ही आप भी न्यायपूर्वक प्रजा का पालन कर रहे हैं।" रोहक की बातें सुनकर राजा अवाक् रह गया। प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर वह अपनी माता को प्रणाम करने गया तथा उनसे रोहक की कही हई सारी बातें कह दी। राजमाता ने उत्तर दिया "पुत्र ! विकारी इच्छा से देखना ही यदि तेरे संस्कारों का कारण हो तो ऐसा अवश्य हुआ। जब तू गर्भ में था, तब मैं एक दिन कुबेर की पूजा करने गई थी। कुबेर की सुन्दर मूर्ति को देखकर तथा वापिस लौटते समय मार्ग में एक धोबी और एक चाण्डाल को देखकर मेरी भावना विकृत हई। इसके बाद घर आने पर एक बिच्छ-युगल को रति-क्रीड़ा करते देखकर भी मन में कुछ विकारी भावना पैदा हुई। वस्तुतः तो तुम्हारे जनक जगत्प्रसिद्ध पिता एक ही हैं।" यह सुनकर राजा रोहक की अलौकिक बुद्धि का चमत्कार देखकर दंग रह गया। माता को प्रणाम कर वह वापिस लौट आया और दरबार का समय होने पर रोहक को महामन्त्री के पद पर नियुक्त कर दिया। इस प्रकार ये चौदह उदाहरण रोहक की औत्पत्तिकी बुद्धि के हैं। (१) भरत व शिला के उदाहरण पहले दिये जा चुके हैं। (२) पणिस (प्रतिज्ञा शर्त) किसी समय एक भोलाभाला ग्रामीण किसान अपने गाँव से ककड़ियाँ लेकर शहर में बेचने के लिये गया। नगर के द्वार पर पहुँचते ही उसे एक धूर्त मिल गया। उस धूर्त ने उसे ठगने का विचार किया और कहा "भाई! अगर मैं तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा लूं तो तुम मुझे क्या दोगे?" ग्रामीण ने कहा "अगर तुम सारी ककड़ियाँ खा लोगे तो मैं तुम्हें इस द्वार में न आ सके ऐसा लड्डू दूंगा।" दोनों में यह शर्त तय हो गई तथा वहाँ उपस्थित कुछ
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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