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________________ ८२] [नन्दीसूत्र ओर लौट आए। (८) अगड-कूप एक बार राजा ने नटों के गाँव फिर संदेश भेजा—'तुम्हारे यहाँ जो कुआ है, वह अत्यन्त मधुर एवं शीतल जल वाला है। अतः उसे हमारे यहाँ भेज दो, अन्यथा दंड के भागी बनोगे।' राजाज्ञा प्राप्तकर लोग चिन्ताग्रस्त होते हुए पुनः रोहक की शरण में दौड़े। रोहक ने ही उन्हें फिर चिन्तामुक्त कर दिया। उसके द्वारा सिखाये हुए व्यक्ति राजा के पास पहुंचे और कहने लगे "महाराज! हमारे यहाँ का कुंआ ग्रामीण है। वह बड़ा भीरु और संकोचशील है। इसलिये आप अपने यहाँ के किसी कुंए को हमारे यहाँ भेजने की कृपा कीजिये। अपने सजातीय पर विश्वास करके वह उसके साथ नगर में आ जायेगा।" राजा रोहक की बुद्धि की प्रशंसा करता हुआ चुप हो गया। (९) वन-खण्ड-कुछ दिन निकल जाने के बाद एक दिन राजा ने फिर रोहक़ के गाँववालों को सन्देश भेजा-"तुम्हारे गाँव के पूर्व में जो वन-खण्ड है उसे पश्चिम में कर दो।" ऐसा करना क्या गाँव वालों के वश की बात थी? रोहक ने ही उन्हें सुझाया- "इस गाँव को ही वनखण्ड की पूर्वदिशा में बसा लो। ऐसा करने पर वनखण्ड स्वयं पश्चिम दिशा में हो जायेगा।" लोगों ने ऐसा ही किया तथा राजकर्मचारियों के द्वारा कार्य पूर्ण हो जाने का सन्देश भेज दिया गया। रोहक की अद्भुत बुद्धि के चमत्कार का राजा को पुनः प्रमाण मिला और वह मन ही मन बहुत आनन्दित हुआ। (१०) पायस—एक दिन अचानक ही राजा ने नटों को आज्ञा दी कि–'बिना अग्नि में पकाये खीर तैयार करके भिजवाओ।' नट लोग फिर हैरान हुए, किन्तु रोहक ने उन्हें सुझाव दिया—'चावलों को पहले पानी में भिगोकर रख दो, तत्पश्चात् उनको दूध-भरी देगची में डाल दो। देगची को चूने के ढेर पर रखकर चूने में पानी डाल दो। चूने की तीव्र गर्मी से खीर पक जायेगी।' ऐसा ही किया गया और पकी हुई खीर राज-दरबार में पेश हुई। उसे तैयार करने की विधि जब राजा ने सुनी तो एक बार फिर वे रोहक की बद्धि के कायल हए। (११) अतिग-उक्त घटना के कुछ समय पश्चात् राजा ने रोहक को अपने पास बुला भेजा और कहा... "मेरी आज्ञा पालन करने वाला बालक कुछ शर्तों को मानकर मेरे पास आये। वे शर्ते हैं—आने वाला न शुक्ल पक्ष में आये और न कृष्ण पक्ष में, न दिन में आए और न रात में, न धूप में आए और न छाया में, न आकाशमार्ग से आये और न भूमि से, न मार्ग से आये और न उन्मार्ग से, न स्नान करके आये और न बिना स्नान किये, किन्तु आए अवश्य।"
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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