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________________ ८०1 [नन्दीसूत्र का यह तरीका किसने बताया?" ग्रामीणों ने एक स्वर से रोहक की ओर इंगित करते हुए कहा-"राजाधिराज! यह इस नन्हें बच्चे रोहक की बुद्धि का चमत्कार है। इसी ने हमें यह उपाय बताया और हम आपकी इच्छानुसार कार्य कर सके हैं।" राजा को इसी उत्तर की आशा थी। उसने रोहक को एक परीक्षा में उत्तीर्ण पाकर उसकी प्रशंसा की तथा नगर की ओर रवाना हो गया। (३) मिण्ढ राजा ने दूसरी बार रोहक की परीक्षा करने के लिए उसके गाँव वालों के पास एक मेंढा भेजा, साथ ही कहलवाया कि 'यह मेढा एक पक्ष पश्चात् लौटाना, पर ध्यान रखना कि इसका वजन न बढ़े और न ही घटने पाए।' गाँव वाले फिर चिन्ताग्रस्त हो गये। सोचने लगे—'अगर इसे अच्छा खाना खिलायेंगे तो इसका वजन बढ़ेगा ही, और भूखा रखेंगे तो घट जायेगा।' कोई उपाय न सूझने पर उन्होंने रोहक को ही बुलाया और उससे अपनी चिन्ता का हल पूछा। रोहक ने अविलम्ब तरीका बताया और उसके निर्देशानुसार गाँव वालों ने मेंढ़े को अच्छी खुराक देना शुरु किया। किन्तु उसके सामने ही एक पिंजरे में व्याघ्र रख दिया। परिणाम यह हुआ कि अच्छी खुराक मिलने पर भी व्याघ्र के भय से मेंढ़े का वजन न बढ़ा और न घटा। एक पक्ष के बाद गाँव लों ने मेंढे को लौटा दिया। राजा ने उसका वजन करवाया तो वह बराबर उतना ही निकला जितना गाँव भेजे जाने के समय था। राजा ने इस घटना के पीछे भी रोहक की ही चतुराई जानकर उसकी सराहना की। (४) कुक्कुट—कुछ दिनों के अनन्तर राजा ने पुनः रोहक की परीक्षा लेने के लिए एक कुक्कुट—अर्थात् मुर्गा उसके गाँव भेज दिया। मुर्गा लड़ना ही नहीं जानता था, फिर भी कहलवाया कि इसे अन्य किसी मुर्गे के बिना ही लड़ाकू बनाया जाये। गाँववाले इस बार भी घबराए कि अन्य मुर्गे के सामने हुए बिना यह लड़ना कैसे सीखेगा? पर रोहक ने यह समस्या भी हल की। एक बड़ा तथा मजबूत दर्पण मंगवाकर मुर्गे के सामने रखवा दिया। इस दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब को ही अपना प्रतिद्वन्द्वी समझकर मुर्गा धीरे-धीरे उससे लड़ने का प्रयत्न करने लगा। कुछ ही समय में लड़ाका बन गया। राजा के पास वापस मुर्गा भेजा गया और जब राजा ने उसे अन्य किसी मुर्गे के बिना ही लड़ते देखा तो रोहक की बुद्धि पर दंग होते हुए अतीव प्रसन्नता प्रकट की। (५) तिल—उक्त घटना के कुछ दिन पश्चात् राजा ने रोहक की और परीक्षा लेने के लिए उसके गाँववालों को दरबार में बुलाकर आज्ञा दी—"तुम्हारे समक्ष तिलों का यह ढेर है, इसे बिना गिने ही बतलाओ कि इसमें कितने तिल हैं? यह भी ध्यान रखना कि संख्या बताने में अधिक विलम्ब न हो।"
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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