SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मतिज्ञान ] कर सकता।' "1" [ ७९ राजा ने यह सुनते ही कौतूहलपूर्वक रोहक द्वारा बनाया हुआ अपनी नगरी का नक्शा देखा | देखकर हैरान रह गया और सोचने लगा- 'यह छोटा सा बालक कितना बुद्धिमान् है जिसने नगरी में घूमकर ही इसका इतना सुन्दर और सही नक्शा बना लिया ।' उसी क्षण उसके मन में यह विचार भी आया कि " मेरे चार सौ निन्यानवै मन्त्री हैं। अगर इनसे भी ऊपर इस बालक के समान एक अतीव कुशाग्र बुद्धि वाला महामन्त्री हो तो राज्यकार्य कितने सुन्दर ढंग से चले। इसके बुद्धि बल के कारण अन्य बल न्यून होने पर भी निष्कंटक राज्य कर सकूंगा तथा किसी भी शत्रु पर सहज ही विजय पा लूँगा । किन्तु पहले इसकी परीक्षा कर लेनी चाहिए।" यह विचार करके राजा रोहक का, उसके पिता का तथा गाँव का नाम पूछकर नगर की ओर चल दिया। इधर अपने पिता के लौटकर आने पर रोहक भी अपने गाँव की ओर रवाना हो गया। राजा भूला नहीं और कुछ समय बाद ही उसने रोहक की परीक्षा लेना प्रारम्भ कर दिया । (२) शिला- राजा ने सर्वप्रथम रोहक के ग्रामवासियों को बुलाकर कहा - "तुम लोग मिलकर एक ऐसा मण्डप बनाओ जो राजा के योग्य हो और उसका आच्छादन गाँव के बाहर पड़ी हुई महाशिला हो । किन्तु शिला को वहाँ से उखाड़ा न जाये।" राजा की आज्ञा सुनकर गाँव के निवासी नट बड़ी चिन्ता में पड़ गये । सोचने लगे मण्डप बनाना तो मुश्किल नहीं पर शिला को उठाए बिना वह मण्डप पर कैसे छाई जायेगी ? लोग इकट्ठे होकर इसी पर विचार विमर्श कर रहे थे कि रोहक भूखा होने के कारण अपने पिता को बुलाने के लिए वहाँ आ पहुँचा। उसने सब बात सुनी और नटों की चिन्ता को समझ गया। समझ लेने के बाद बोला- ' आप लोग इस छोटी-सी बात को लेकर चिन्ता में पड़े हुए हैं। मैं आपकी चिन्ता मिटा देता हूँ । ' लोग हैरान होकर उसकी ओर देखने लगे; एक ने उपाय पूछा। रोहक ने कहा- पहले आप सब शिला के चारों ओर की भूमि खोदो । चारों तरफ भूमि खुद जाने पर नीचे सुन्दर खम्भे खड़े कर दो और फिर शिला के नीचे की जमीन खोद डालो। यह हो जाये तब फिर शिला के नीचे की तरफ चारों ओर सुन्दर दीवारें खड़ी कर दो। बस मंडप तैयार हो जायेगा और शिला हटानी भी नहीं पड़ेगी।' रोहक की बात सुनकर लोग बड़े प्रसन्न हुए और उसकी हिदायत के अनुसार ही काम प्रारम्भ कर दिया। थोड़े दिनों में ही महाशिला के नीचे भव्य स्तंभ लगा दिये गये और वैसा ही सुन्दर परकोटा आदि बनाकर मंडप तैयार किया गया। बिना हटाये ही शिला मंडप का आच्छादन बन गई। कार्य समाप्त होने पर भरत सहित अन्य नटों ने जाकर राजा से निवेदन किया 'महाराज ! आपकी आज्ञानुसार मंडप तैयार कर दिया गया है। कृपा करके उसका निरीक्षण करने के लिए पधारें ।' राजा ने स्वयं आकर मंडप को देखा और प्रसन्न होकर पूछा - " तुम लोगों को मंडप बनाने
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy