________________
७८]
[नन्दीसूत्र वह अपने कार्य में लग गई।
रोहक ने विमाता के वचन सुने तो उससे बदला लेने की ठान ली और उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। समय आया और एक दिन जब वह अपने पिता के पास सोया हुआ था, अचानक उठकर बोला—'पिताजी! कोई पुरुष दौड़कर जा रहा है।' भरत नट ने यह सुनकर सोचा कि मेरी पत्नी सदाचारिणी नहीं है। परिणामस्वरूप वह पत्नी से विमुख हो गया तथा उससे बोलना भी बन्द कर दिया।
पति के रंग-ढंग देखकर रोहक की विमाता समझ गई कि किसी प्रकार रोहक ने ही अपने पिता को मेरे विरुद्ध भड़काया है। उसकी अक्ल ठिकाने आई और वह रोहक से बोली-'बेटा! मुझसे भूल हुई। भविष्य में मैं तेरे साथ मधुर और अच्छा व्यवहार रखूगी।'
रोहक का क्रोध भी शान्त हो गया और वह अपने पिता के भ्रम-निवारण का अवसर खोजने लगा। एक दिन चाँदनी रात में उसने अंगुली से अपनी ही छाया दिखाते हुए पिता से कहा "पिताजी ! देखिये वह पुरुष भाग जा रहा है !" भरत नट ने क्रोधित होकर अपनी तलवार उठाई और उस लम्पट पुरुष को मारने के लिये दौड़ा। रोहक से उसने पूछा-"कहाँ है वह दुष्ट?" इस पर रोहक ने अपनी ही छाया की ओर इंगित करके कहा "यहा रहा।"
भरत नट बहुत लज्जित हुआ यह सोचकर कि मैंने इस बालक के कहने से पत्नी को दुराचारिणी समझ लिया। मन ही मन पश्चात्ताप करते हुए वह अपनी पत्नी से पूर्ववत् मधुर व्यवहार रखने लगा। फिर भी बुद्धिमान रोहक ने विचार किया "विमाता, विमाता ही होती है। कहीं मेरे द्वारा किये गये व्यवहार से कुपित रहने के कारण यह किसी दिन मुझे विष आदि के प्रयोग से मार न डाले।" यह सोचकर वह छाया की तरह पिता के साथ रहने लगा। उन्हीं के साथ खातापीता, सोता था।
एक दिन किसी कार्यवश भरत को उज्जयिनी जाना था। रोहक भी पिता के साथ ही गया। नगरी का वैभव और सौन्दर्य देखकर वह मुग्ध-सा हो गया और वहां घूम-धूमकर उसके नक्शे को अपने मस्तिष्क में बिठाने लगा। कुछ समय पश्चात् जब वह पिता के साथ अपने गाँव की ओर लौटा तब नगरी के बाहर क्षिप्रा नदी के तट तक आते ही भरत को किसी भूली हुई वस्तु का स्मरण आया। अतः रोहक को नदी के तट पर बिठाकर वह पुनः नगरी की ओर लौट गया।
रोहक नदी के तीर पर रेत से खेलने लगा। अकस्मात् ही उसे न जाने क्या सूझा कि उसने रेत पर उज्जयिनी का महल समेत हूबहू नक्शा बना दिया। संयोगवश उसी समय नगरी का राजा उधर आ गया। चलते हुए वह रोहक के बनाए हुए नक्शे के समीप आया और उस पर चलने को हुआ। उसी क्षण रोहक ने टोकते हुए कहा-"महाशय! इस मार्ग से मत जाओ।"
राजा चौंककर बोला—'क्यों क्या बात है?" रोहक ने उत्तर दिया-"यहाँ राजभवन है, इसमें कोई व्यक्ति बिना इजाजत के प्रवेश नहीं