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मतिज्ञान]
[७७ ये चार प्रकार की बुद्धियाँ शास्त्रकारों ने वर्णित की हैं, पांचवां भेद उपलब्ध नहीं होता।
(१) औत्पत्तिकी बुद्धि का लक्षण ४८. पुव्वमदिट्ठ-मस्सुय-मवेइय, तक्खणविसुद्धगहियत्था ।
अव्वाहय-फलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम ॥ जिस बुद्धि के द्वारा पहले बिना देखे और बिना सुने ही पदार्थों के विशुद्ध अर्थ-अभिप्राय को तत्काल ही ग्रहण कर लिया जाता है और जिससे अव्याहत-फल-बाधारहित परिणाम का योग होता है, उसे औत्पत्तिकी बुद्धि कहा जाता है।
औत्पत्तिकी बुद्धि के उदाहरण ४९. भरह-सिल-मिंढ-कुक्कुड-तिल-बालुय-हत्थि-अगड-वणसंडे ।
पायस-अइआ-पत्ते, खाडहिला-पंचपियरो य ॥१॥ भरह-सिल-पणिय-रुक्खे, खुड्डग-पड-सरड-काय-उच्चारे । गय-घयण-गोल-खंभे-खुड्डग-मग्गित्थि-पइ-पुत्ते ॥२॥ महुसित्थ-मुद्दि-अंके नाणए भिक्खु चेडग-निहाणे ।।
सिक्खा य अत्थसत्थे इच्छा य महं सयसहस्से ॥३॥ विवेचन-गाथाओं का अर्थ विवेचन से ही समझना चाहिये।
आगमों में तथा अन्य ग्रन्थों में उन बुद्धिमानों का नाम विश्रुत रहा है जिन्होंने अपनी तत्काल उत्पन्न बुद्धि या सूझ-बूझ से कही हुई बातों से अथवा किये गये अद्भुत कृत्यों से लोगों को चमत्कृत किया है। ऐसे व्यक्तियों में राजा, मंत्री, न्यायाधीश, संत-महात्मा, शिष्य, देव, दानव, कलाकार, बालक, नर-नारी आदि के वर्णन उल्लेखनीय होते हैं और उनके वर्णन इतिहास, कथानक, दृष्टान्त, उदाहरण या रूपक आदि में मिलते हैं।
___आजकल यद्यपि अनेकों दृष्टांत ऐसे पाये जा सकते हैं जो औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा एवं पारिणामिकी बुद्धि से संबंधित हैं, किन्तु यहाँ पर सूत्रगत उदाहरणों का ही उल्लेख किया जाता है
(१) भरत-उज्जयिनी नगरी के निकट नटों के एक ग्राम में भरत नामक नट रहता था। उसकी पत्नी का देहान्त हो गया और वह रोहक नामक एक पुत्र को छोड़ गई। बालक बड़ा होनहार और बुद्धिमान् था, किन्तु छोटा था, अतः उसकी व अपनी देखभाल के लिए भरत ने दूसरा विवाह कर लिया।
रोहक की विमाता दुष्ट स्वभाव की स्त्री थी। वह उसके प्रति दुर्व्यवहार किया करती थी। एक दिन रोहक से रहा नहीं गया तो बोला—'माताजी! आप मुझसे अच्छा व्यवहार नहीं करती, क्या यह आपके लिए उचित है?' रोहक के यह शब्द सुनते ही विमाता आगबबूला होती हुई बोली 'दुष्ट ! छोटे मुँह बड़ी बात कहता है ! जा मेरे दुर्व्यवहार के कारण जो तुझसे बने कर लेना।' यह कहकर