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________________ वीतरागता का परिणाम शान्ति, मुक्ति, आर्जव एवं मार्दव से उपलब्धि भाव-करण-योग-सत्य का परिणाम गुप्ति की साधना का परिणाम मन-वचन-कायसमाधारणता का परिणाम ज्ञान-दर्शन- चारित्रसम्पन्नता का परिणाम पाँचों इन्द्रियों के निग्रह का परिणाम कषायविजय एवं प्रेय-द्वेष-मिथ्यादर्शनविजय का परिणाम अध्ययन-सार तप द्वारा कर्मक्षय की पद्धति तप के भेद-प्रभेद केवली के योगनिरोध का क्रम मोक्ष की ओर जीव की गति एवं स्थिति का निरूपण४९२ तीसवाँ अध्ययन : तपोमार्गगति बाह्य तप: प्रकार, अनशन के भेद-प्रभेद अवमौदर्य (ऊनोदरी) तप स्वरूप और प्रकार भिक्षाचर्यातप रसपरित्यागतप: एक अनुचिन्तन कायक्लेशतप विविक्तशय्यासनः प्रतिसंलीनतारूप तप आभ्यन्तर तप और उसके प्रकार प्रायश्चित : स्वरूप और प्रकार विनयतप: स्वरूप और प्रकार उत्तराध्ययन/ ९५ ४८० सात बोल- पिण्डावग्रह प्रतिमा, भयस्थान आठ-नौ दशवाँ बोल - मदस्थान, ब्रह्मगुप्ति, भिक्षु धर्म ४८० ४८२ ४८२ ४८४ अध्ययन-सार चरणविधि के सेवन का माहात्म्य चरणविधि की संक्षिप्त झांकी दो प्रकार के पापकर्मबन्धन से निवृत्ति तीन बोल- दण्ड, गौरव, शल्य ४८५ ४८७ चार बोल- विकथा, कषाय, संज्ञा, ध्यान पाँच बोल - व्रत, इन्द्रियविषय समिति, क्रिया छह बोल - लेश्या, काय, आहार के कारण ४८८ ४९१ ४९४ ४९५ ४९६ ४९७ ५०१ ५०४ ५०६ ५०६ वैयावृत्य का स्वरूप स्वाध्याय : स्वरूप और प्रकार ध्यान : लक्षण और प्रकार ष्युत्सर्ग: स्वरूप और विश्लेषण द्विविध तप का फल इकतीसवाँ अध्ययन: चरणविधि ५०८ ५०९ ५१० ५११ ५१२ ५१३ ५१४ ५१६ ५१८ ५१९ ५२० ५२० ५२० ५२१ ५२२ ५२३ ५२४ ५२६ ग्यारहवाँ - बारहवाँ बोल - उपासकप्रतिमा, भिक्षुप्रतिमा ५२६ तेरह - चौदह-पन्द्रहवाँ बोल - क्रियास्थान, भूतग्राम, परमाधार्मिक देव सोलह-सत्रहवां बोल-गाथापोडशक, असंयम अठारह उन्नीस वीसवाँ बोल - ब्रह्मचर्य, ज्ञाताध्ययन, असमाधिस्थान ५२९ ५३० इक्कीस - वाईसवाँ बोल - शबलदोष, परीषह तेईस - चौवीसवाँ बोल - सूत्रकृतांग- अध्ययन, देवगण ५३० पच्चीस-छब्वीसवाँ बोल - भावनाएँ, दशश्रुतस्कन्धादि के उद्देश अध्ययन-सार सर्वदुःखमुक्ति के उपाय कथन की प्रतिज्ञा दुःखमुक्ति तथा सुखप्राप्ति का उपाय ज्ञानादिप्राप्तिरूप समाधि के लिए कर्तव्य दुःख की परम्परागत उत्पत्ति राग-द्वेष के उन्मूलन का प्रथम उपाय : अतिभोजनत्याग : अब्रह्मचर्यपोषक बातों का त्याग द्वितीय उपाय कामभोग दुःखों के हेतु : मनोज्ञ-अमनोज्ञ रूपों में राग-द्वेष से दूर रहे मनोज्ञ-अमनोज्ञ शब्दों के प्रति राग-द्वेषमुक्त रहने का निर्देश ५२५ सत्ताईस अट्ठाईसवाँ बोल - अनगारगुण, आचारप्रकल्प के अध्ययन ५३२ उनतीस-तीसवाँ बोल - पापश्रुतप्रसंग, मोहनीयस्थान ५३३ इकतीस-बत्तीस तेतीसवाँ बोल - सिद्धगुण, योगसंग्रह, आशातना पूर्वोक्त तेतीस स्थानों के आचरण का फल बत्तीसवाँ अध्ययन : प्रमादस्थान मनोज्ञ-अमनोज्ञ गन्ध के प्रति राग-द्वेषमुक्त रहने का निर्देश मनोज्ञ-अमनोज्ञ रस के प्रति राग-द्वेषमुक्त रहने का निर्देश ५२७ ५२८ मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्पर्शो के प्रति राग-द्वेषमुक्त रहने का निर्देश ५३१ ५३४ ५३६ ५३७ ५३८ ५३८ ५३९ ५४० ५४१ ५४२ ५४४ ५४५ ५४८ ५५० ५५२ ५५४
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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