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विषयानुक्रम/९४जयघोष मुनि विजयघोष के यज्ञ में ३९८ मोक्षमार्गगति : माहात्म्य और स्वरूप
४३७ यज्ञकर्ता द्वारा भिक्षादान का निषेध एवं मुनि
ज्ञान और उसके प्रकार
४३८ की प्रतिक्रिया
३९८ द्रव्य, गुण और पर्याय का लक्षण जयघोष मुनि द्वारा विमोक्षणार्थ उत्तर
४०० नौ तन्त्र और सम्यक्त्व का लक्षण विजयघोष ब्राह्मण द्वारा जयघोष मुनि से प्रतिप्रश्न ४०० दशविध रुचिरूप सम्यक्त्व के दश प्रकार जयघोष मुनि द्वारा समाधान
४०१ सम्यक्त्वश्रद्धा के स्थायित्व के तीन उपाय सच्चे ब्राह्मण के लक्षण
४०३ सम्यग्दर्शन की महत्ता मीमांसकमान्य वेद और यज्ञ आत्मरक्षक नहीं ४०५ सम्यक्त्व के आठ अंग श्रमण-ब्राह्मणादि किन गुणों से होते हैं, किनसे नहीं ४०५ चारित्र : स्वरूप और प्रकार
४५२ विजयघोष द्वारा कृतज्ञताप्रकाशन एवं गुणगान ४०६ सम्यक् तप : भेद-प्रभेद जयघोष मुनि द्वारा वैराग्यमय उपदेश
४०७ मोक्ष प्राप्ति के लिए चारों की उपयोगिता ४५५ विरक्ति, दीक्षा और सिद्धि
उनतीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम छठवीसवाँ अध्ययन : सामाचारी
अध्ययन-सार
४५६ अध्ययन-सार ४०९ सम्यक्त्वपराक्रम से निर्वाणप्राप्ति
४५७ सामाचारी और उसके दश प्रकार ४११ संवेग का फल
४५९ दशविध सामाचारी का प्रयोजनात्मक स्वरूप ४१२ निर्वेद से लाभ दिन के चार भागों में उत्तरगुणात्मक दिनचर्या ४१४ धर्मश्रद्धा का फल पौरुषी का कालपरिज्ञान ४१५ गुरु-साधर्मिक-शुश्रूषा का फल
४६१ औत्सर्गिक रात्रिचर्या ४१६ आलोचना से उपलब्धि
४६२ विशेष दिनचर्या ४१८ (आत्म) निन्दना से लाभ
४६३ प्रतिलेखना संबंधी विधि-निषेध ४१९ - गर्हणा से लाभ
४६४ तृतीय पौरुषी का कार्यक्रमः भिक्षाचर्या ४२२ सामायिकादि षडावश्यक से लाभ
४६५ चतुर्थ पौरुषी का कार्यक्रम ४२५ स्तव-स्तुतिमंगल से लाभ
४६७ दैवसिक कार्यक्रम
४२५ काल-प्रतिलेखना से उपलब्धि
४६७ रात्रिक चर्या और प्रतिक्रमण
४२६ प्रायश्चित्तकरण से लाभ
४६८ उपसंहार
४२८ क्षमापणा से लाभ
४६८ सत्ताईसवाँ अध्ययन : खलुंकीय स्वाध्य
स्वाध्याय एवं उसके अंगों से लाभ
४६९ अध्ययन-सार
एकाग्र मन की उपलब्धि
४७१ गार्ग्य मुनि का परिचय
संयम, तप और व्यवदान के फल ४३०
४७२ विनीत वृषभवत् विनीत शिष्यों से गरु को समाधि ४३०
सुखशात का परिणाम
४७२ अविनीत शिष्य दुष्ट वृषभों से उपमित
अप्रतिबद्धता से लाभ
४३१ आचार्य गार्य का चिन्तन
विविक्त शय्यासन से लाभ
४३२ कुशिष्यों का त्याग करके तप:साधना में संलग्न
विनिवर्तना-लाभ गााचार्य
प्रत्याख्यान की नवसूत्री
४७४ प्रतिरूपता का परिणाम
४७८ अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति
वैयावृत्य से लाभ अध्ययन-सार
४३६ सर्वगुणसम्पन्नता से लाभ
४२९
४७३
४७३
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४७९ ४७९