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५९०
५९२
५७१
उत्तराध्ययन/९६ मनोज्ञ-अमनोज्ञ भावों के प्रति राग-द्वेषमुक्त रहने क्रय-विक्रय का निषेध भिक्षा और भोजन का निर्देश ५५६ की विधि
५९० रागी के लिए ही ये दुःख के कारण, वीतरागी पूजा-सत्कार आदि से दूर के लिए नहीं
५५८ शुक्लध्यानलीन, अनिदान, अकिंचन : मुनि ५९१ राग-द्वेषादि विकारों के प्रवेशस्त्रोतों से सावधान रहें ५५९ अन्तिम आराधना से दु:खमुक्त मुनि अपने ही संकल्प-विकल्प : दोषों के हेतु ५६० छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति वीतरागी की सर्व कर्मों और दुःखों से मुक्ति का क्रम ५६१ उपसंहार
अध्यसन-सार
अध्ययन का उपक्रम और लाभ तेतीसवाँ अध्ययन : कर्मप्रकृति अजीवनिरूपण . अध्ययन-सार
५६२ अरूपी-अजीव-निरूपण कर्मबन्ध और कर्मों के नाम
५६३ रूपी-अजीव-निरूपण आठ कर्मों की उत्तरप्रकृतियाँ
५६४ जीव-निरूपण कर्मों के प्रदेशाग्र, सेन, काल और भाव ५६८ सिद्ध-जीव-निरूपण उपसंहार
५७०
संसारस्थ जीव चौतीसवाँ अध्ययन : लेश्या
स्थावर जीव और पृथ्वीकायनिरूपण
अप्कायनिरूपण अध्ययन-सार
वनस्पतिकायनिरूपण अध्ययन का उपक्रम
५७३ त्रसकाय के तीन भेद
६१५ नामद्वार
५७३
तेजस्कायनिरूपण वर्णद्वार
५७४ वायुकायनिरूपण
६१७ रसद्वार
५७५
उदार त्रसकायनिरूपण गंधद्वार
५७६
द्वीन्द्रिय त्रस स्पर्शद्वार
त्रीन्द्रिय त्रस परिणामद्वार
५७७
चतुरिन्द्रिय त्रस लक्षणद्वार
पंचेन्द्रियत्रसनिरूपण स्थानद्वार
५७९
नारक जीव स्थितिद्वार
५७९
पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च स गतिद्वार
जलचर त्रस आयुष्यद्वार
स्थलचर त्रस उपसंहार
५८४
खेचर त्रस पैंतीसवाँ अध्ययन : अनगार मार्गगति मनुष्यनिरूपण अध्ययन-सार
देवनिरूपण
६३१ उपक्रम
५८७
उपसंहार संगों को जान कर त्यागे
अन्तिम साधना संलेखना का विधिविधान ६३८ हिंसादि आस्रवों का परित्याग
५८७ मरणविराधना-मरण आराधना : भावनाएँ अनगार का निवास और गहकर्मसमारम्भ ५८८ कान्दी आदि अप्रशस्तभावनाएँ भोजन पकाने और पकवाने का निषेध ५८९ उपसंहार
६१५
५७६
५७७
५८४
६
३
६२७
६२९
५८५
६३७
५८७
६४०
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