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समीक्षात्मक अध्ययन/८७ सन् १९५९ से १९६१ तक पूज्य घासीलाल जी म. ने उत्तराध्ययन पर संस्कृत टीका का निर्माण किया था। वह टीका हिन्दी,
गु जराती अनुवाद के साथ जैनशास्त्रोद्धार समिति-राजकोट से प्रकाशित हुई। सन्मतिज्ञानपीठ आगरा से साध्वी चन्दना जी ने मूल व भावानुवाद तथा संक्षिप्त टिप्पणों के साथ उत्तराध्ययन का संस्करण प्रकाशित किया है। उसका दुर्लभजी केशवजी खेताणी द्वारा गुजराती में अनुवाद भी बम्बई से प्रकाशित हुआ है।
आगमप्रभावक पुष्पविजय जी म. ने प्राचीनतम प्रतियों के आधार पर विविध पाठान्तरों के साथ जो शुद्ध आगम संस्करण महावीर विद्यालय-बम्बई से प्रकाशित करवाये हैं उनमें उत्तराध्ययन भी है। धर्मोपदेष्टा फूलचन्दजी म. ने मूलसुत्तागमे में, मुनि कन्हैयालाल जी कमल ने 'मूलसुत्ताणि' में, महासती शीलकुँवर जी ने 'स्वाध्याय सुधा' में और इनके अतिरिक्त पन्द्रह-बीस स्थानों से मूल पाठ प्रकाशित हुआ है। आधुनिक युग में शताधिक श्रमण-श्रमणियाँ उत्तराध्ययन को कंठस्थ करते हैं तथा प्रतिदिन उसका स्वाध्याय भी। इससे उत्तराध्ययन की महत्ता स्वयं सिद्ध है। उत्तराध्ययन के हिन्दी में पद्यानुवाद भी अनेक स्थलों से प्रकाशित हुए हैं। उनमें श्रमणसूर्य मरुधरकेसरी श्री मिश्रीमल जी म. तथा आचार्य हस्तीमल जी म. के पद्यानुवाद पठनीय हैं। इस तरह आज तक उत्तराध्ययन पर अत्यधिक कार्य हुआ है।
प्रस्तुत सम्पादन
उत्तराध्ययन के विभिन्न संस्करण समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं और उन संस्करणों का अपने आप में विशिष्ट महत्त्व भी रहा है। प्रस्तुत संस्करण आगम प्रकाशन समिति ब्यावर (राज.) के अन्तर्गत प्रकाशित होने जा रहा है। इस ग्रन्थमाला के संयोजक और प्रधान सम्पादक हैं-श्रमणसंघ के भावी आचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.। मधुकर मुनि जी शान्त प्रकृति के मूर्धन्य मनीषी सन्तरत्न हैं। उनका संकल्प है-आगम-साहित्य को अधुनातम भाषा में प्रकाशित किया जाए। उसी संकल्प को मूर्तरूप देने के लिए ही स्वल्पावधि में अनेक आगमों के अभिनव संस्करण प्रबुद्ध पाठकों के करकमलों में पहुंच चुके हैं जिससे जिज्ञासुओं को आगम के रहस्य समझने में सहूलियत हो गई है। उसी पवित्र लड़ी में उत्तराध्ययन का यह अभिनव संस्करण है।
इस संस्करण की यह मौलिक विशेषता है कि इसमें शुद्ध मूल पाठ है। भावानुवाद है और साथ ही विशेष स्थलों पर आगम के गम्भीर रहस्य को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन व्याख्या-साहित्य के आधार पर सरल
और सरस विवेचन भी है। विषय गम्भीर होने पर भी प्रस्तुतीकरण सरल और सुबोध है। इसके सम्पादक, विवेचक और अनुवादक हैं-राजेन्द्रमुनि साहित्यरत्न, शास्त्री, काव्यतीर्थ, 'जैन सिद्धान्ताचार्य', जो परम श्रद्धेय, राजस्थान-केसरी, अध्यात्मयोगी, उपाध्याय पूज्य सद्गुरुवर्य श्री पुष्करमुनि जी म. के प्रशिष्य हैं, जिन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में लिखा है। उनका आगमसम्पादन का यह प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है। यदि युवाचार्यश्री का अत्यधिक आग्रह नहीं होता तो सम्भव है, इस सम्पादनकार्य में और भी अधिक विलम्ब होता। पर युवाचार्य श्री की प्रबल प्रेरणा ने मुनिजी को शीघ्र कार्य सम्पन्न करने के लिए उत्प्रेरित किया। तथापि मुनिजी ने बहुत ही निष्ठा के साथ यह कार्य सम्पन्न किया है, इसलिए वे साधुवाद के पात्र हैं। मेरा हार्दिक आशीर्वाद है कि वे साहित्यिक क्षेत्र में अपने मुस्तैदी कदम आगे बढ़ावें। आगमों का गहन अध्ययन कर अधिक से अधिक श्रुतसेवा कर जिनशासन की शोभा में श्रीवृद्धि करें।
उत्तराध्ययन एक ऐसा विशिष्ट आगम है, जिसमें चारों अनुयोगों का सुन्दर समन्वय हुआ है। यद्यपि उत्तराध्ययन की परिगणना धर्मकथानुयोग में की गई है, क्योंकि इसके छत्तीस अध्ययनों में से चौदह अध्ययन धर्म-कथात्मक हैं। प्रथम, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और दशम ये छह अध्ययन उपदेशात्मक हैं। इन अध्ययनों