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। उत्तराध्ययन/८६. उसके पश्चात् उत्तराध्ययन पर अन्य अनेक विज्ञ, मुनि, तथा अन्य अनेक विभिन्न सन्तों व आचार्यों ने वृत्तियाँ लिखी हैं। हम यहाँ संक्षेप में सूचन कर रहे हैं। विनयहंस ने उत्तराध्ययन पर एक वृत्ति का निर्माण किया। विनयहंस कहाँ के थे? यह अन्वेषणीय है। संवत् १५५२ में कीर्तिवल्लभ ने, संवत् १५५४ में उपाध्याय कमलसंयत ने, संवत् १५५० में तपोरत्न वाचक ने, गुणशेखर, लक्ष्मीवल्लभ ने, संवत् १६८९ में भावविजय ने, हर्षनन्द गणी ने, संवत् १७५० में उपाध्याय धर्ममन्दिर, संवत् १५४६ में उदयसागर, मुनिचन्द्र सूरि, ज्ञानशील गणी, अजितचन्द्र सूरि, राजशील, उदयविजय, मेघराज वाचक, नगरसी गणी, अजितदेव सूरि, माणक्यशेखर, ज्ञानसागर आदि अनेक मनीषियों ने उत्तराध्ययन पर संस्कृत भाषा में टीकाएँ लिखीं। उनमें से कितनीक टीकाएँ विस्तृत हैं तो कितनी ही संक्षिप्त हैं। कितनी ही टीकाओं में विषय को सरल व सुबोध बनाने के लिए प्रसंगानुसार कथाओं का भी उपयोग किया गया है। लोकभाषाओं में अनुवाद और व्याख्याएँ
संस्कृत प्राकृत भाषाओं की टीकाओं के पश्चात् विविध लोकभाषाओं में संक्षिप्त टीकाओं का युग, प्रारम्भ हुआ। संस्कृत भाषा की टीकाओं में विषय को सरल व सुबोध बनाने का प्रयास हुआ था, साथ ही उन टीकाओं में जीव, जगत्, आत्मा, परमात्मा, द्रव्य आदि की दार्शनिक गम्भीर चर्चाएं होने के कारण जन-सामान्य के लिए उन्हें समझना बहुत ही कठिन था। अत: लोकभाषाओं में, सरल और सुबोध शैली में बालावबोध की रचनाएँ प्रारम्भ हुईं। बालावबोध के रचयिताओं में पार्श्वचन्द्र गणी और आचार्य मुनि धर्मसिंहजी का नाम आदर के साथ लिया जा सकता है।
बालावबोध के बाद आगमों के अनुवाद अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी इन तीन भाषाओं में मुख्य रूप से हुए हैं। जर्मन विद्वान् डॉ. हर्मन जैकाबी ने चार आगमों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उनमें उत्तराध्ययन भी एक है। वह अनुवाद सन् १८९५ में ऑक्सफॉर्ड से प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात् वही अनुवाद सन् १९६४ में मोतीलाल बनारसीदास (देहली) ने प्रकाशित किया। अंग्रेजी प्रस्तावना के साथ उत्तराध्ययन जार्ल सारपेन्टियर, उप्पसाला ने सन् १९२२ में प्रकाशित किया। सन् १९५४ में आर. डी. वाडेकर और वैद्य पूना द्वारा मूल ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। सन् १९३८ में गोपालदास जीवाभाई पटेल ने गुजराती छायानुवाद, सन् १९३४ में हीरालाल हंसराज जामनगर वालों ने अपूर्ण गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया। सन् १९५२ में गुजरात विद्यासभा-अहमदाबाद से गुजराती अनुवाद टिप्पणों के साथ एक से अठारह अध्ययन प्रकाशित हुए। सन् १९५४ में जैन प्राच्य विद्या भवन-अहमदाबाद से गुजराती अर्थ एवं धर्मकथाओं के साथ एक से पन्द्रह अध्ययन प्रकाशित हुए। संवत् १९९२ में मुनि सन्तबाल जी ने भी गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया। वीर संवत् २४४६ में आचार्य अमोलकऋषिजी ने हिन्दी अनुवाद सहित उत्तराध्ययन का संस्करण निकाला। वी. सं. २४८९ में श्री रतनलाल जी डोशी सैलाना ने तथा वि. सं. २०१० में पं. घेवरचन्द जी बांठिया-बीकानेर ने एवं वि. सं. १९९२ में श्वे. स्था. जैन कॉन्फ्रेस-बम्बई द्वारा मुनि सौभाग्यचन्द्र सन्तबाल जी ने हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया।
सन् १९३९ से १९४२ तक उपाध्याय श्री आत्माराम जी म. ने जैनशास्त्रमाला कार्यालय-लाहौर से उत्तराध्ययन पर हिन्दी में विस्तृत विवेचन प्रकाशित किया। उपाध्याय आत्माराम जी म. का यह विवेचन भावपूर्ण, सरल और आगम के रहस्य को स्पष्ट करने में सक्षम है। सन् १९६७ में मुनि नथमल जी ने मूल, छाया, अनुवाद, टिप्पण युक्त अभिनव संस्करण श्वे. तेरापंथी महासभा-कलकत्ता से प्रकाशित किया है। इस संस्करण के टिप्पण भावपूर्ण हैं।