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________________ ६३४ उत्तराध्ययनसूत्र २२७. चउद्दस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे। लन्तगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा॥ [२२७] लान्तक-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति चौदह सागरोपम की और जघन्य दस सागरोपम की है। २२८. सत्तरस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे। महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमा॥ [२२८] महाशुक्र-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति चौदह सागरोपम की और जघन्य चौदह सागरोपम की है। २२९. अट्ठारस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे। सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा॥ ___ [२२९] सहस्रार-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति अठारह सागरोपम की और जघन्य सत्तरह सागरोपम की है। २३०. सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे। आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा॥ [२३०] आनत-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति उन्नीस सागरोपम की और जघन्य अठारह सागरोपम की है। २३१. वीसं तु सागराइं उक्कासेण ठिई भवे। पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई॥ [२३१] प्राणत-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति वीस सागरोपम की और जघन्य उन्नीस सागरोपम की है। २३२. सागरा इक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे। आरणम्मि जहन्त्रेणं वीसई सागरोवमा॥ [२३२] आरण-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति इक्कीस सागरोपम की है, और जघन्य बीस सागरोपम की है। २३३. वावीसं सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे। ___अच्चुयम्मि जहन्नेण सागरा इक्कवीसई॥ [२३३] अच्युत देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति बाईस सागरोपम की और जघन्य इक्कीस सागरोपम की है। २३४. तेवीस सागराइं उक्कासेण ठिई भवे। पढमम्मि जहन्ने] बावीसं सागरोवमा॥ _ [२३४] प्रथम ग्रैवेयक-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तेईस सागरोपम की , जघन्य बाईस सागरोपम की है।
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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