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उत्तराध्ययनसूत्र २२७. चउद्दस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे।
लन्तगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा॥ [२२७] लान्तक-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति चौदह सागरोपम की और जघन्य दस सागरोपम की है।
२२८. सत्तरस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे।
महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमा॥ [२२८] महाशुक्र-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति चौदह सागरोपम की और जघन्य चौदह सागरोपम की है।
२२९. अट्ठारस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे।
सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा॥ ___ [२२९] सहस्रार-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति अठारह सागरोपम की और जघन्य सत्तरह सागरोपम की है।
२३०. सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे।
आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा॥ [२३०] आनत-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति उन्नीस सागरोपम की और जघन्य अठारह सागरोपम की है।
२३१. वीसं तु सागराइं उक्कासेण ठिई भवे।
पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई॥ [२३१] प्राणत-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति वीस सागरोपम की और जघन्य उन्नीस सागरोपम की है।
२३२. सागरा इक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे।
आरणम्मि जहन्त्रेणं वीसई सागरोवमा॥ [२३२] आरण-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति इक्कीस सागरोपम की है, और जघन्य बीस सागरोपम की है।
२३३. वावीसं सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे।
___अच्चुयम्मि जहन्नेण सागरा इक्कवीसई॥ [२३३] अच्युत देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति बाईस सागरोपम की और जघन्य इक्कीस सागरोपम की है।
२३४. तेवीस सागराइं उक्कासेण ठिई भवे।
पढमम्मि जहन्ने] बावीसं सागरोवमा॥ _ [२३४] प्रथम ग्रैवेयक-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तेईस सागरोपम की , जघन्य बाईस सागरोपम की है।