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छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति [२१८] ये प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं, और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त है।
२१९. साहियं सागरं एक्कं उक्कोसेणं ठिई भवे।
भोमेजाणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया॥ [२१९] भवनवासियों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किंचित् अधिक एक सागरोपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है।
२२०. पलिओवममेगं तु उक्कोसेणं ठिई भवे।
वन्तराणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया॥ [२२०] व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक पल्योपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है।
२२१. पलिओवमं एगंतु वासलक्खेण साहियं।
पलिओवमऽट्ठभागो जेइसेसु जहनिया॥ [२२१] ज्योतिष्कदेवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है।
२२२. दो चेव सागराइं उक्कासेण वियाहिया।
सोहम्मंमि जहन्त्रेणं एगं च पलिओवमं॥ [२२२] सौधर्म-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति दो सागरोपम की और जघन्य एक पल्योपम की है।
२२३. सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेण वियाहिया।
ईसाणम्मि जहन्नेणं साहियं पलिओवमं॥ [२२३] ईशान-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किञ्चित् अधिक दो सागरोपम और जघन्य किञ्चित् अधिक एक पल्योपम है।
२२४. सागराणि य सत्तेव उक्कोसेण ठिई भवे।
सणंकुमारे जहन्नेणं दुनि ऊ सागरोवमा॥ [२२४] सनत्कुमार-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति सात सागरपोम की और जघन्य दो सागरोपम की
है।
२२५. साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे।
माहिन्दम्मि जहन्नेणं साहिया दुन्नि सागरा॥ [२२५] माहेन्द्रकुमार-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किञ्चित् अधिक सात सागरोपम की और जघन्य किञ्चित् अधिक दो सागरोपम की है।
२२६. दस चेव सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे।
बम्भलोए जहन्नेण सत्त ऊ सागरोवमा॥ [२२६] ब्रह्मलोक-देवों की आयुस्थिति उत्कृष्ट दस सागरोपम की और जघन्य सात सागरोपम की