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उत्तराध्ययनसूत्र [२०९] वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गए हैं—कल्पोपग (कल्प-सहित—इन्द्रादि के रूप में कल्प अर्थात् आचार-मर्यादा एवं शासन-व्यवस्था वाले) और कल्पातीत (पूर्वोक्त कल्पमर्यादाओं से रहित)।
२१०. कप्पोवगा बारसहा सोहम्मीसाणगा तहा।
सणंकुमार-माहिन्दा बम्भलोगा य लन्तगा॥ २११. महासुक्का सहस्सारा आणया पाणया तहा।
आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा॥ [२१०-२११] कल्पोपग देवों के बारह प्रकार हैं-सौधर्म, ईशानक, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक एवं लान्तक; महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत- ये कल्पोपग देव हैं।
२१२. कप्पाईया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया।
गेक्जिाऽणुत्तरा चेव गेविज्जा नवविहा तहिं॥ [२१२] कल्पातीत देवों के दो भेद हैं—ग्रैवेयकवासी और अनुत्तरविमानवासी। उनमें से ग्रैवेयक देव नौ प्रकार के हैं।
२१३. हेट्ठिमा-हेट्ठिमा चेव हेट्ठिमा-मज्झिमा तहा।
हेट्ठिमा- उवरिमा चेव मज्झिमा-हेट्ठिमा तहा॥ २१४. मज्झिमा-मज्झिमा चेव मज्झिमा-उवरिमा तहा॥
उवरिमा-हेट्ठिमा चेव उवरिमा-मज्झिमा तहा॥ २१५. उवरिमा-उवरिमा चेव इय गेविजया सुरा।
विजया वेजयन्ता य जयन्ता अपराजिया॥ २१६. सव्वट्ठसिद्धगा चेव पंचहाऽणुत्तरा सुरा।
इइ वेमाणिया देवा णेगहा एवमायओ॥ [२१३-२१४-२१५-२१६] (१) अधस्तन-अधस्तन (२) अधस्तन-मध्यम, (३) अधस्तनउपरितन, (४) मध्यम-अधस्तन-(५) मध्यम-मध्यम, (६) मध्यम-उपरितन, (७) उपरितन-अधस्तन, (८) उपरितन-मध्यम और (९) उपरितन-उपरितन—ये नौ ग्रैवेयक हैं।
विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धक, ये पांच प्रकार के अनुत्तर देव हैं। इस प्रकार वैमानिक देव अनेक प्रकार के हैं।
२१७. लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया।
इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ [२१७] ये सभी लोक के एक भाग में स्थित ही रहते हैं, समग्र लोक में नहीं। इससे आगे उनके काल विभाग का चार प्रकार से कथन करूंगा।
२१८. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य।
ठिई पडुच्च साईया सपजवसिया वि य॥