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छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति
(१४) हस्तिमुख, (१५) सिंहमुख और (१६) व्याघ्रमुख। पंचम चतुष्क में चार-(१७) अश्वकर्ण, (१८) सिंहकर्ण, (१९) गजकर्ण और (२०) कर्णप्रावरण। छठे चतुष्क में चार-(२१) उल्कामुख, (२२) विद्युन्मुख, (२३) जिह्वामुख, (२४) मेघमुख। सप्तम चतुष्क में चार-(२५) घनदन्त (२६) गूढदन्त, (२७) श्रेष्ठदन्त और (२८) शुद्धदन्त । इन सब अन्तर्वीपों में द्वीप के सदृश नाम वाले युगलिया रहते हैं। इसी प्रकार इन्हीं नाम वाले शिखरी पर्वत के भी अन्य अट्ठाईस अन्तर्वीप हैं। वे सब पूर्ववर्ती अट्ठाईस नामों के सदृश नाम आदि वाले होने से अभेद की विवक्षा से पृथक् कथन नहीं किया गया है। अतः सूत्र में अट्ठाईस भेद ही कहे गए हैं। कुल मिलाकर ५६ भेद हुए। देव-निरूपण
२०४. देवा चउव्विहा वुत्ता ते मे कित्तयओ सुण।
भोमिज-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणिया तहा॥ [२०४] देव चार प्रकार के कहे गए हैं-भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। मैं उनके विषय में कहता हूँ, सुनो।
२०५. दसहा उ भवणवासी अट्टहा वणचारिणो।
पंचविहा जोइसिया दुविहा वेमाणिया तहा॥ [२०५] भवनवासी देव दस प्रकार के हैं, वाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं, ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के हैं और वैमानिक देव दो प्रकार के हैं।
२०६. असुरा नाग-सुवण्णा विजू अग्गी य आहिया।
दीवोदहि-दिसा वाया थणिया भवणवासिणो॥ [२०६] असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार, ये दस भवनवासी देव हैं।
२०७. पिसाय-भूय जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा।
महोरगा य गन्धव्वा अट्ठविहा वाणमन्तरा॥ [२०७] पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व ये आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव हैं।
२०८. चन्दा सूरा य नक्खत्ता गहा तारागणा तहा।
. दिसाविचारिणो चेव पंचहा जोइसालया॥ [२०८] चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र ग्रह और तारागण ये पांच प्रकार के ज्योतिष्क देव हैं। ये पांच दिशाविचारी (अर्थात्-मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए भ्रमण करने वाले) ज्योतिष्क देव हैं।
२०९. वेमाणिया उजे देवा दुविहा ते वियाहिया।
कप्पोवगा य बोद्धव्वा कप्पाईया तहेव य॥ १. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर) भा, पत्र ३६०-३६१