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________________ ६३० उत्तराध्ययनसूत्र [२००] मनुष्यों की आयुस्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। २०१. पलिओवमाइं तिण्ण उ उक्कोसेण वियाहिया। पुवकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया॥ २०२. कायट्ठिई मणुयाणं अन्तरं तेसिमं भवे। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं॥ [२०१-२०२] उत्कृष्टतः पूर्वकोटिपृथक्त्व-अधिक तीन पल्योपम की और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की मनुष्यों की कायस्थिति है। उनका अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। २०३. एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो॥ [२०३] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से इनके हजारों भेद हैं। विवेचन–अकर्मभूमिक, कर्मभूमिक और अन्तीपक मनुष्य : अकर्मभूमिक–अकर्मभूमि (भोगभूमि) में उत्पन्न, अर्थात्-यौगलिक मानव। कर्मभूमिक-कर्मभूमि में अर्थात् भरतादि क्षेत्र में उत्पन्न। अन्तर्वीपक-छप्पन अन्तर्वीपों में उत्पन्न।' कर्मभूमिक : पन्द्रह भेद-पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह ये कुल मिलाकर १५ कर्मभूमियाँ हैं, इनमें उत्पन्न होने वाले कर्मभूमिक मनुष्य भी १५ प्रकार के हैं। अकर्मभूमिक : तीस भेद–५ हैमवत, ५ हैरण्यवत्, ५ हरिवर्ष, ५ रम्यकवर्ष, ५ देवकुरु और ५ उत्तरकुरु, ये कुल मिलाकर ३० भेद अकर्मभूमिक के हैं। इनमें उत्पन्न होने वाले अकर्मभूमिक भी ३० प्रकार के हैं। अन्तीपकः छप्पन भेद- वैताढ्य पर्वत के पूर्व और पश्चिम के सिरे पर जम्बूद्वीप की वेदिका के बाहर दो-दो दाढाएँ विदिशा की ओर निकली हुई हैं। उनमें से पूर्व की दो दाढों में से एक ईशान की ओर और दूसरी आग्नेय (अग्निकोण) की ओर लम्बी चली जाती है। पश्चिम की दो दाढों में से एक नैऋत्य की ओर वदूसरी वायव्यकोण की ओर जाती है। उन प्रत्येक दाढ पर जगती के कोट से तीन-तीन सौ योजन आगे जाने पर ३ योजन लम्बे-चौडे कल चार अन्तर्दीप आते हैं। फिर वहाँ से ४००-४०० योजन आगे जाने पर ४ योजन लम्बे-चौड़े दूसरे ४ अन्तर्वीप आते हैं। इस प्रकार सौ-सौ योजन आगे क्रमशः बढ़ते जाने पर उतने ही योजन के लम्बे और चौड़े, चार-चार अन्तर्वीप आते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक दाढा पर ७-७ अन्तर्वीप होने से चारों दाढाओं के कुल २८अन्तर्वीप हैं। उनके नाम क्रम से इस प्रकार हैं-प्रथम चतुष्क में चार (१) एकोरुक, (२) आभाषिक, (३) वैषाणिक और (४) लांगुलिक। द्वितीय चतुष्क में चार-(५) हयकर्ण, (६) गजकर्ण, (७) गोकर्ण और (८) शष्कुलीकर्ण । तृतीय चतुष्क में चार(९) आदर्शमुख, (१०) मेषमुख, (११) हयमुख और (१२) गजमुख। चतुर्थ चतुष्क में चार—(१३). अश्वमुख, १. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर) भा. २, पत्र ३६०, २. वही, पत्र ३६० ३. वही, पत्र ३६०
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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