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उत्तराध्ययनसूत्र
[१९१] उनकी आयुस्थिति उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त
की है।
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१९१ असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ । पुव्वकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १९६. कायठिई खहयराणं अन्तरं तेसिमं भवे । कालं अणन्तमुक्कसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥
[१९२-१९३] खेचर जीवों की कायस्थिति उत्कृष्टतः कोटिपूर्व-पृथक्त्व अधिक पल्योपम असंख्यातवें भाग की और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की है।
और उनका अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त्त का है और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है।
१९४. एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ॥
[१६४] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से इनके हजारों भेद हैं ।
विवेचन — सम्मूर्च्छिम और गर्भज : सम्मूच्छिम — माता-पिता के संयोग के विना ही उत्पत्तिस्थान में स्थित औदारिक पुद्गलों को पहले-पहल शरीर रूप में परिणत कर लेना समूर्च्छन- जन्म है ।
गर्भज— माता-पिता के संयोग से उत्पत्तिस्थान में स्थित शुक्र- शोणित के पुद्गलों को पहले-पहल शरीर के लिए ग्रहण करना गर्भ जन्म है। गर्भ से जिसकी उत्पत्ति (जन्म) होती है, उसे गर्भ-व्युत्क्रान्तिक (गर्भोत्पत्तिक) या गर्भज कहते हैं ।
जलचर, स्थलचर, खेचर — जल में विचरण करने और रहने वाले प्राणी (मत्स्य आदि ) जलचर कहलाते हैं। स्थल (जमीन) पर विचरण करने वाले प्राणी स्थलचर या भूचर कहलाते हैं । इनके मुख्य दो प्रकार हैं- चतुष्पद (चौपाये) और परिसर्प (रेंग कर चलने वाले)। तथा खेचर उसे कहते हैं, जो आकाश में उड़ कर चलता हो जैसे— बाज आदि पक्षी । २
एकखुर आदि पदों के अर्थ — एकखुर — जिनका खुर एक - अखण्ड हो, फटा हुआ न हो वे, जैसे - घोड़ा आदि । द्विखुर — जिनके खुर फटे हुए होने से दो अंशों में विभक्त हों, जैसे – गाय आदि । गण्डीपद—– गण्डी अर्थात् कमलकर्णिका के समान जिसके पैर वृत्ताकार गोल हों, जैसे— हाथी आदि । सनखनद—नखसहित पैर वाले । जैसे— सिंह आदि । भुजपरिसर्प - भुजाओं से गमन करने वाले नकुल, मूषक आदि । उरः परिसर्प - वक्ष - छाती से गमन करने वाले सर्प आदि । चर्मपक्षी — चर्म ( चमड़ी) की पांखों वाले चमगादड़ आदि। रोमपक्षी – रोम – रोएं की पंखों वाले, हंस आदि । समुद्गपक्षी - समुद्ग अर्थात्— डिब्बे के समान सदैव बंद पंखों वाले । विततपक्षी - सदैव फैली हुई पंखों वाले ३
स्थलचरों की उत्कृष्ट कायस्थिति — गाथा १८५ में पूर्वकोटि पृथक्त्व (दो से नौ पूर्वकोटि) अधिक तीन पल्योपम की बताई गई है, उसका अभिप्राय यह है कि पल्योपम की आयु वाले तो मर कर पुनः
१. (क) उत्तरा . (साध्वी चन्दना) टिप्पण पृ. ४७९-४९०
२.
उत्तरा गुजराती भाषान्तर, भा. २
(ख) तत्त्वार्थसूत्र २/३२ (पं. सुखलाल जी) पृ. ६७ ३. उत्तरा (साध्वी चन्दना) टिप्पण पृ. ४७९-४८०