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________________ छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति ६२३ के अन्त तक और भवनपति तथा व्यन्तर देवों का जन्म एवं निवास प्रायः तिर्यग्लोक में एवं अधोलोक के प्रारम्भ में होता है। नारकजीव १५६. नेरइया सत्तविहा पुढवीसु सत्तसू भवे। रयणाभ सक्कराभा वालुयाभा य आहिया॥ १५७. पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा। इह नेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया॥ [१५६-१५७] नैरयिक जीव सात प्रकार के हैं रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा तथा तमस्तम:प्रभा, इस प्रकार इन सात पृथ्वियों में उत्पन्न होने वाले नैरयिक सात प्रकार के कहे गए हैं। १५८. लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे उ वियाहिया। एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ [१५८] वे सब नैरयिक लोक के एक देश में रहते हैं, (समग्र लोक में नहीं।) इससे आगे उनके (नैरयिकों के) चार प्रकार के कालविभाग का कथन करूंगा। १५९. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। __ ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ [१५९] वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं, किन्तु स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं। १६०. सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया। पढमाए जहन्नेणं दसवाससहस्सिया॥ [१६०] पहली रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयुस्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की है। १६१. तिण्णेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। दोच्चाए जहन्नेणं एगं तु सागरोवमं॥ [१६१] दूसरी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की है। १६२. सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। __ तइयाए जहन्नेणं तिण्णेव उ सागरोवमा॥ __ [१६२] तीसरी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट सात सागरोपम की है। १. उत्तरा० प्रियदर्शिनीटीका, भा० ४, पृ०८७५
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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