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छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति
[९३] जो बादर पर्याप्त वनस्पतिकाय-जीव हैं, वे दो प्रकार के बताए गए हैं—साधारण-शरीर और प्रत्येकशरीर। __९४. पत्तेगसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया।
रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली तणा तहा॥ [९४] प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय अनेक प्रकार के कहे गए हैं (यथा-) वृक्ष, गुच्छ (बैंगन आदि), गुल्म (नवमालिका आदि), लता (चम्पकलता आदि), वल्ली (भूमि पर फैलने वाली ककड़ी आदि की बेल) और तृण (दूब आदि)।
९५. लयावलय पव्वगा कुहुणा जलरुहा ओसही-तिणा।
हरियकाया य बोद्धव्वा पत्तेया इति आहिया॥ [९५] लता-वलय (केला आदि), पर्वज (ईख आदि), कुहण (भूमिस्फोट, कुक्कुरमुत्ता आदि), जलरुह (कमल आदि), ओषधि (जौ, चना, गेहूँ आदि धान्य), तृण और हरितकाय (सभी प्रकार की हरी वनस्पति), ये सभी प्रत्येकशरीरी कहे गए हैं, ऐसा जानना चाहिए।
९६. साहारणसरीरा उणगहा ते पकित्तिया।
आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य॥ [९६] साधारणशरीरी वनस्पतिकाय के जीव अनेक प्रकार के हैं—आलू, मूल (मूली आदि), शृंगबेर (अदरक)
९७. हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केय-कन्दली।
पलंदू-लसणकन्दे य कन्दली य कुडुंबए॥ ९८. लोहि णीहू य थिहू य कुहगा य तहेव य।
कण्हे य वजकन्दे य कन्दे सूरणए तहा॥ ९९. अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य।
मुसुण्ढी य हलिद्दा य ऽणेगहा एवमायओ॥ __ [९७-९८-९९] हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद-कदलीकन्द, पलाण्डु (प्याज), लहसुन, कन्दली, कुस्तुम्बक।
लोही, स्निहू, कुहक, कृष्ण वज्रकन्द और सूरणकन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुंडी तथा हरिद्रा (हल्दी) इत्यादि-अनेक प्रकार के जमीकन्द हैं।
१००. एगविहमणाणत्ता सुहमा तत्थ वियाहिया।
__ सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा॥ [१००] सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव एक ही प्रकार के हैं, उनके अनेक भेद नहीं हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव समग्र लोक में और बादर वनस्पतिकाय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं।
१०१. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥