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________________ ६१२ उत्तराध्ययनसूत्र [८७] अप्कायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। ८८. सत्तेव सहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे। आउट्टिई आऊणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥ [८८] अप्कायिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। ८९. असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया। कायट्ठिई आऊणं तं कायं तु अमुंचओ॥ [८९] अप्कायिक जीवों की काय स्थिति उत्कृष्ट असंख्यात काल (असंख्यात उत्सर्पिणीअवसिर्पिणी) की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। अप्काय को नहीं छोड़ कर लगातार अप्काय में ही उत्पन्न होना, कायस्थिति है। ९०. अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं। विजढंमि सए काए आऊजीवाण अन्तरं ॥ [९०] अप्काय को छोड़ कर पुनः अप्काय में उत्पन्न होने का अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। ९१. एएसिं वण्ओ चेव गन्धओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो॥ [९१] इन अप्कायिकों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं। विवेचन–अप्काय—जिनका अप् यानी जल ही काय—शरीर है, वे अप्काय या अप्कायिक कहलाते हैं। अप्काय के आश्रित छोटे-छोटे अन्य जीव सूक्ष्मदर्शकयंत्र से देखे जा सकते हैं। किन्तु अप्काय के जीव अनुमान आगम आदि प्रमाणों से सिद्ध हैं। अप्पकाय के मुख्य दो भेद-सूक्ष्म और बादर। पुनः दोनों के दोदो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त। बादर पर्याप्त अप्काय के शुद्धोदक आदि ५ भेद हैं। भेदों में अन्तर–उत्तराध्ययन में बादर पर्याप्त अप्काय के ५ भेदं बतलाए गए हैं, जबकि प्रज्ञापना में इसी के अवश्याय से लेकर रसोदक तक १७ भेद बताए हैं। यह अन्तर सिर्फ विवक्षाभेद से हैं। वनस्पतिकाय-निरूपण ९२. दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा बायरा तहा। __ पजत्तमपजत्ता एवमेए दुहा पुणो॥ [९२] वनस्पतिकायिक जीवों के दो भेद हैं—सूक्ष्म और बादर। दोनों के पुनः पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद हैं। ____९३. वायरा जे उ पजत्ता दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य पत्तेगा य तहेव य॥ १. (क) प्रज्ञापना पद १ वृत्ति, (ख) उत्तरा. गुजराती भाषान्तर, भा. २, पत्र ३४७
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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